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अलंकारों का वर्गीकरण
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अध्याय
अलंकारों का वर्गीकरण तथा अर्थालंकारों का समीक्षात्मक विवेचन
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अलकारों के वर्गीकरण के पूर्व अलकारों के मूल तत्व के विषय मे विचार कर लेना अनुपयुक्त न होगा । अलकारों की विवेचना के प्रसंग मे यह जानना आवश्यक है कि उनका मूल तत्व क्या है ? अलंकारों को काव्यगत चारुत्व का हेतु अथवा शोभा के अतिशय का आधायक कहा गया है । वस्तुत उक्ति की विचित्रता ही अलकार होती है जो कि कवि की प्रतिभा से उत्थित होती है । यह उक्ति जब काव्यगत चमत्कार उत्पन्न करती है तो वही अलकार होता है। अलकारों के मूल के विषय मे आचार्यों ने निम्न मुख्य मत प्रतिपादित किए है
अलंकारों का मूल तत्त्व वक्रोक्ति या अतिशयोक्ति
आचार्य भामह के अनुसार अलकारों का मूल तत्व वक्रोक्ति है । इसी वक्रोक्ति के माध्यम से अलंकार भक्ति होते है 1 यह वक्रोक्ति या अतिशयोक्ति ही अलकारों का जीवनाधायक तत्व है । इसी लोकातिक्रान्तवाग्विन्यास को अतिशयोक्ति की अभिधा प्रदान की गयी है ।
आचार्य भामह की इस मान्यता का उत्तरवर्ती अलंकारिकों ने भी मुक्त कण्ठ से समर्थन किया है । आचार्य दण्डी ने दृढतर शब्दों मे कहा है कि
अलकारान्तराणामप्येकमा हु परायणम् । वागीशमहितामुक्तिमिमामतिशयायाम् ।।
का० द० 2/220
बृहस्पति द्वारा प्रशंसित यह अतिशयोक्ति अन्य अलंकारों का भी प्रधान और सर्वश्रेष्ठ आधार है ।
सैषा सर्वत्र वक्रोक्तिरनयार्थी विभाव्यते ।
यत्नोऽस्या कविना कार्य कोऽलङ्कारोऽनया विना ।।
निमित्ततोवचो यत्तु लोकातिक्रान्तगोचरम् । मन्यन्तेऽतिशयोक्ति तामलकारतया यथा ।।
भा० काव्यालकार 2/85
भा० काव्या० 2/81