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हीयमानावर चित्र का लक्षण -
जिस रचना विशेष के आदि, मध्य और अन्त से एक, दो या तीन वर्ण कम होते जाये, उसे हीयमानाक्षर चित्र कहते है ।'
श्रंखलाबन्ध चित्र का लक्षण -
जो रचना विशेष परस्पर अक्षरों में स्थित रेखा से स्पष्ट व्यवहित हो, उसे ससार श्रृखल से मुक्त आचार्यों ने श्रृखलाबन्ध कहा है ।
नागपाश चित्र का लक्षण -
सर्पाकृति धारण करने वाले क्न्छ - रचना - विशेष में व्यवधान किये हुए वर्गों को पढना चाहिए । इस रीति का निर्मित वाक्य का आश्रय लेकर जो बन्धरचित होता है, उसे विद्वज्जन नागपाश चित्र कहते हैं ।
नापाश रचना की विधि -
ऊपर मुख वाली सर्पाकृति चार रेखाओं द्वारा लिखकर मुख और पुच्छ के बीच मे तिरछी छ रेखाओं को लिखन चाहिए । इस प्रकार रचना करने से इक्कीस कोष्ठक होते हैं । तदनन्तर फण से प्रारम्भ कर प्रत्येक पक्ति के पुच्छ स्क पृथक् - पृथक् इन वर्गों की स्थापना करनी चाहिए । प्रथम पक्ति के प्रथम कोष्ठक के अक्षर से प्रारम्भ कर अन्तपर्यन्त चतुरर क्रीडा मे गजपदचार के क्रम से कम इस एक वाक्य को बाँचना चाहिए । पन तृतीय पक्त के प्रथम कोष्ठ से प्रारम्भ कर उसी प्रकार बाँचना चाहिए । तदनन्तर मध्यम पक्ति के प्रथम कोष्ठक से प्रारम्भ कर या द्वितीय पक्ति मे तीन आवृत्ति से क्रमश बाँचना चाहिए । तीन हिस्सों में विभक्त रहने पर भी एकठारूप यह नागपाश त्रिगुणित हो सकता है यह प्रश्नोत्तर सप्त वर्ण वाल है । अपनी बुद्धि के अनुसार अन्य भी कम या अधिक अक्षर का बनाना चाहिए ।
प्रहेलिका का स्वरूप -
प्रहेलिका अलकार का स्वप्रथम स्केत भामह कृत काव्यालकार में
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अचि0 - 2/105 वही - 2/111 वही - 2/114