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विवाह
प्रश्न-यदि किसी कुमार और कुमारी में प्रेम इतना दृद हो गया है कि विवाह-संबंध न होनसे उनके जीवनके नष्ट होनेकी संभावना हो, तो क्या अभिभावकोंको उसका विचार करना और उनका विवाह कर देना अनुचित होगा?
उत्तर-अभिभावकोंको उसपर विचार करके अवश्य अपने को झुका देना चाहिए।
प्रश्न-किन्तु, क्या इससे उस प्रवृत्तिको प्रोत्साहन न मिलेगा जिसका आधार आपके विचारानुसार मात्र आकर्षण होता है और जो विवाहके सिद्धान्तके विरुद्ध भी है ?
उत्तर-मिलेगा। लेकिन, जीवन एक कोरा सिद्धांत ही नहीं है । वह आदर्शके साथ संभवका समझौता है,-व्यवहारका आदर्शके साथ ऐक्य साधन है। वह बात व्यवहारको छोड़ देनेसे नहीं सिद्ध होगी। व्यवहारको जब कि आदर्शसंगत बनाना है, तब आदर्श भी व्यवहार युक्त होनेपर ही कुछ महत्त्व रख सकता है। प्रस्तुत उदाहरणमें एक तरफ मौत है तो दूसरी ओर कुछ वह कर्म है जो सौ फी-सदी सही नहीं है । कह दो कि वह गलत है, लेकिन मौत उससे भी गलत है और जीते रहना मौतसे सब दर्जे बेहतर है।
प्रश्न-किन्तु, क्या समाजके आधार-भूत उस सिद्धांतकी रक्षाके लिए, जिसपर इतना बड़ा सामाजिक जीवन निर्भर है, एक-दो मौत भी हो जाना बेहतर नहीं है ?
उत्तर-मौत हो जाना बेहतर हो सकता है, लेकिन मौतका किया जाना बेहतर नहीं है । ऊपरके उदाहरणमें मौत अगर सचमुच हो जाती है, तो वह मौत की गई है । एक व्यक्ति यदि सामाजिक कर्त्तव्यकी भावनाको ज्वलंत रूपसे अपने भीतर जगाकर अपने प्रेमी अथवा प्रेमिकाका बिछोह सह लेता है, तो क्या उसकी विथा जिंदा मौतकी विथासे कम है ? ऐसी अवस्थामें मैं कहूँगा कि ऐसा जीवनद्वारा अपनाया गया मरण सचमुच उसका और समाजका उपकार करता है, और करेगा।
प्रश्न-जिस प्रेमावस्थाके लिए आपने ऊपर सिद्धांतकी बलि देना भी उचित बताया है. उसको उदाहरण मानकर यवक-समाज ऐसे