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________________ व्यक्ति, मार्ग और मोक्ष २३९ MAAVvM मेरी बुद्धि अलग है आपकी बुद्धि अलग । इसलिए बुद्धिमें कोई समझौता नहीं ही है। लेकिन आपकी आत्मा और मेरी आत्मा अलग नहीं है । इसलिए परमात्माकी ओर चलनेमें समझौता हुआ रक्खा है । बल्कि वह समझौता उधरके अतिरिक्त और कहीं नहीं ही है। इसीको यों कहो कि जगतका त्राण आध्यात्मिकताके मागमें हैं । वादवादान्तरोंसे उलझन ही बढ़ने वाली है। प्रश्न-आत्मा क्या ? आध्यात्मिकता क्या ? उत्तर--आत्मा वह जो मुझमें है, तुममें है, और दोनोंमें एक है, और जिसमें हम दोनों एक हैं। और आध्यात्मिक प्रवृत्ति वह जो इस एकताकी ओर बढ़ती है। प्रश्न-जीवनका उद्देश्य क्या है ? उत्तर-जीवनका उद्देश्य ? यानी मेरे-तुम्हारे जीवनका उद्देश्य । वह उद्देश्य है समष्टिके प्राणोंके साथ एकरस हो जाना । व्यक्ति अपनेको छिटका हुआ अलग न अनुभव करे, समस्तके साथ अभिन्नता अनुभव करे; यही उसकी मुक्ति, यही उद्देश्य है । प्रश्न-क्या जीवनका उद्देश्य सुख और शान्ति पाना नहीं है ? उत्तर-मान भी लूँ कि सुख और शान्ति उद्देश्य है; लेकिन तभी सवाल खड़ा होता है कि वह सुख और शान्ति क्या है ? सुख-शान्ति व्यक्तिगत पारिभाषामें समझे और लिए जाते हैं । इसीलिए मैं यह पसन्द नहीं करूँगा कि जीवनके उद्देश्यको सुख और शान्तिके रूपमें कहा जाय । मेरा सुख, मेरी शान्ति मैं अपने ढंगसे किन्हीं भी कामोंमें समझ सकता हूँ। वह दूसरेके सुख और शान्तिसे टकरा भी सकता है। इसलिए 'सुख और शान्ति' कहने के बाद 'सच्चा सुख' और 'झूठा सुख,' 'सच्ची शान्ति' और 'झूठी शान्ति;' इस तरहके शब्दोंका व्यवहार आवश्यक हो जायगा। ऊपर जो मैंने बात कही उसमें सुख और शान्ति तो आ ही जाती है। नहीं तो सुख और शान्तिकी दूसरी परिभाषा ही क्या? प्रश्न-मनुष्य स्वार्थी क्यों बनता है ? क्या स्वार्थी बनकर उसके जीवनका उद्देश पूरा हो जाता है ? उत्तर-अविद्याके कारण स्वार्थी बनता है; माया-मोहके कारण, श्रद्धाकी हीनताके कारण स्वार्थी बनता है।
SR No.010836
Book TitlePrastut Prashna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1939
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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