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४ - औद्योगिक विकास : शासन-यंत्र
प्रश्न – क्या राष्ट्रीय अर्थ -तंत्र ( = Economic Nationalism ) अनर्गल औद्योगिक विकासके परिणामोंको किसी हदतक कम कर सकता है ?
उत्तर - राष्ट्राधीन पूंजी - तंत्र या आपके Economic Nationalism में जो भाव आता है वह पूँजीवादके आधारपर बढ़ाये गये औद्योगिक विकासका विरोधी नहीं है । इटली और जर्मनी, यहाँ तक कि आजके रूसकी, या फिर इंग्लैंडकी अथवा अन्य देशोंकी भी, नीति में क्या एकानमिक नेशनिलज़्मकी ( =Economic Nationalism की ) भावना नहीं है ? लेकिन उससे तो कठिनाइयाँ बढ़ती ही दिखाई दे रहीं हैं । इसलिए यह माननेका अवकाश नहीं है कि उस प्रकारकी भावना ऊपर जिस विकीरणकी (= Decentralizationकी) बात कही उसमें मददगार हो सकेगी | बल्कि हालात देखते हुए तो वह बाधा ही है।
प्रश्न-औद्योगिक विकासके साथ ही साथ कलोंका उपयोग कृषिकार्य आदिमें भी किया जाने लगा है। क्या इसे प्रोत्साहन देना उचित होगा ?
उत्तर- - कलका उपयोग वहाँ तक ठीक है जहाँ तक किसानको जरूरत से अधिक उसपर निर्भर नहीं बन जाना पड़ता । लेकिन अगर मशीनका मतलब यह है कि किसान हर किसी छोटे-बड़े कामके मौकेपर एक स्पेशलिस्टकी कृपाका प्रार्थी हो रहता है, तो बुराई है । तब अनायास किसान की मेहनत से खेतमें उत्पन्न होनेवाले अन्नका स्वामित्व उनके हाथमें जा रहेगा जो कल कारखानोंके मालिक हैं। वे फिर बड़े स्वार्थोंके प्रतिनिधि होते हैं । परिणाम यह होगा कि अन्न भूखेके पटके लिए नहीं बल्कि राष्ट्रोंके रागद्वेष की आगको चताए रखनेवाले ईंधन के काम में आने लगेगा | बहुत बड़े पैमानेके फार्म मेरे खयाल में तो मानव-संबंधों को शुद्ध बनाने की दृष्टिसे आज हिंदुस्तानकी हालत में उपादेय नहीं हैं । वैसे फार्म चिना खूब चुस्त और जटिल मशीनोंके चल ही नहीं सकते । साथ ही जहाँ ऐसी बेढब
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