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प्रस्तुत प्रश्न
हर कहीं झगड़ते हैं । लेकिन कौन भला आदमी है जो इसलिए दोके इकटेपनको एकदम असंभव कहेगा। इससे रगड़-बिगड़ तो होती रह सकती है, क्यों कि उसका निपटारा भी होता रह सकता है। लेकिन मामला अगर हिंसातक पहुँचा, -एक दूसरेको नोंच खानेकी प्रवृत्ति ही हो आई, तब तो ईश्वर ही बचाये । और हम विश्वास रक्खें कि ईश्वर है तो रक्षा भी है ही । उस ईश्वरकी तरफ़से यह विधान है कि कोई किसीको खाकर खत्म नहीं कर सकता । मुँह अगर पूछको खाता है तो उससे भयकी आशंका नहीं । उससे किसीको कुछ नुकसान नहीं होगा : क्यों कि यह तो कोरा तमाशा है, माया है । वैसा अपने अंगको खाना कब तक चलेगा ? कोई ऐसा दुराग्रही हुआ भी, तो उसीमें साफ उसकी मौत भी बैठी है।