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प्रस्तुत प्रश्न
मैंने कहा कि सार्वजनिक हितमें उसका कम भाग नहीं है । वह परिवारके बच्चोंको सँभालती है, अन्नको भोजनके रूपमें प्रस्तुत करती है, घरके और दस काम संभालती है। यह सब भी क्या सार्वजनिक और सामाजिक हितका काम नहीं है ? अथवा कि यह काम क्यों कर. महत्त्वका है ? सार्वजनिक कार्य कहनेसे जिस एक विशेष प्रकारके व्यवस्थापक और कोलाहलात्मक कामोंका बोध होने लगा है, उसके लिए क्या न पुरुषसे मांग की जाय कि वह उस भारको सभाले । मेरे ख्यालों पुरुपकी कटोरता भी इस भाँति चरितार्थ और सदुपयुक्त होती है।
प्रश्न- सार्वजनिक कार्यके लिए यदि किसी वास्तविक योग्यताकी आवश्यकता है और वह किसी स्त्रीमें पाई जाती है, तो क्या आप उसे उत्साहित न करेंगे ?
उत्तर-जैसे ? प्रश्न-जरने कि किसी, अंदोलन, सभा-सोसायटी या कौंसिलअसेम्ब्लीमें नेतृत्व करनेकी क्षमता?
उत्तर-हाँ, उसके लिए मैं स्त्रीको उत्साहित नहीं करूँगा । इसके मान क्षमताका अपमान नहीं है । लेकिन क्षमताका लक्षण ही यह है कि वह भूखी नहीं होती । बाल बच और अड़ोस-पड़ोसमें क्या वह क्षमता क्षमता होकर काफी काम और संतोष नहीं पा सकती ? अगर नहीं तो कैसी वह क्षमता है ? पास. पड़ोसमें करनेको काम कम नहीं है, बल्कि जितनी क्षमता अधिक सक्षम हो, उतनी ही वह आसपासकी स्थितिको सुधारने और बदलने में अधिक समर्थ होगी।
फिर यह भी याद रखना चाहिए कि अपवाद नियमको सिद्ध करता है। अपवाद सदा होंगे और होने देने चाहिए ।
प्रश्न-क्या कभी कभी ऐसा समय देश, जाति या परिवारके लिए नहीं आता है जब कि स्त्रियोंको बिना किसी भेदके पुरुपोंकी तरह वाहर आकर सार्वजनिक कार्यमें भाग लेना चाहिए?
उत्तर- 'बिना किसी भेद ' पर क्यों ज़िद हो ? हाँ, ऐसे समय जरूर आते हैं जब उन्हें साधारण गिरस्तीके कामोसे बाहर आकर कुछ और करना पड़े। राष्ट्रीय संकटके समय अथवा और अनहोनी घटनाओंके समय ऐसा होता है। उसमें अनुचित कुछ नहीं है।