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________________ सत्यामृत - - - -- उत्तर-गेनो ध्यान योग हैं इसके ये दोनों लिये निकले थे, जगरसेवा करना या तीची रचना में बहुत कुछ समानता है। अन्तर इतना ही है करा उस समय इनका प्रय नहीं था । यह बात कि भक्ति योगी का मन, वचन. शरीर किसी तो उन्हें तपस्या करते करते सूझ पड़ी। कल्पित या अकल्पित देव की उपासना गुणगान उत्तर-7 लोग किस ध्येय से निकले थे आदि में लगा रहता है और संन्यास योगी के इस बात की ऐतिहासिक मीमासा करने की यहां जीवन में ऐसी भक्ति या तो होनी नहीं है या बरत नहीं है। अगर ये जनसेवा के लक्ष्य से नाममात्र को होती है, इसकी मुख्यता नहीं होती। नहीं निकले थे तो तीर्थ रचना के प्रयत्न के पहिले सभव है उस देव को पाना या उस में लीन तक संन्यासी थे। अगर जन सेवा के ध्येय से होजाना उस संन्यास-धोगी का ध्येय हो, पन्तु इसने गृहत्याग किया था तो गृह-त्याग के बाद से यह ध्येय अमुक दिशा का सकेत-मात्र करता है की ये कर्मयोगके पथिक थे। जैसे युद्ध करना और वह दिनचर्या में भर नहीं जाता जब कि भक्त पद्धती सामग्री एकत्रित करना एकही कायधारा है योगी की दिनचर्या में भक्ति भरी रहती है। उसी प्रकार कर्म क ना और कर्म-साधना करना ___ प्रश्न-सन्गस अगर युवावला में लिया दोनों को एक धारा है। आप नो क्या बुराई है १ म महावीर म. बुद्ध अन्न-म महावीर और म. युद्ध ने तो आदि ने युवावस्था में ही संन्यास किया था तीर्थ रचना को इसलिये उन्हें कर्मयोगी कहा ... उत्तर ये लोग संन्याम-योगी नहीं थे कर्म- जाय तो ठीक है। पर उनके सैकड़ा शिष्य, जो गृहयोगी थे । ये तीर्थकर थे, नीर्थ की चना कर्म त्याग क.ते थे, उन्हें संन्यास-योगी कहा जाय या शीलवा के बिना कैसे हो सकती है। इनका कर्मयोगी। जीवन समाज सेवा का जीवन था. समाज के उत्तर-उन में योगी कितने ये यह कहना साध संनप इन्हें फरना पड़ा, सामाजिक और कठिन है पर उन में जितने योगी थे उन योगियों धार्मिर क्रानि इसने की। प्रचारक बनकर गाव में अधिकाश कर्मयोगी थे। म. महावीर के शिष्य गाव सत्या प्रचार किया । ये तो कर्मशीलता की एक सत्य नोक प्रचार के लिय स्वयंसेवक बने मूनि धे इन्हे संन्यास-योगी न समझना चाहिये। थे। शाति ओर कांत या संगठन करने के लिये प्रश्न--गृह-रयाग के बाद इन लोगों का वे दीनित हुए थे, दुनिया से हटा पात सेवन जीवन सन्यासी जीवन धीमा। ये सुख दम्य की के लिये नहीं, इसलियं वे सन्यासयोग न कहे पवाह नहीं क ते थे, समाज को पर्याह नहीं करते जा सकवे. कर्मयोगी ही कहे जा सकते हैं। हा. थे, नपस्या में लीन रहत थे, कान-प्रिय थे इस उन में मे व्यक्ति भी हो सकते हैं तो सिर्फ मकार सन्यास के सारे चिद इनमें मौजट प्रान्सशांति के लिये म. महावीर के संघ में आये फिर ये कर्म रोगी कैसे ये. जनसेवा जिनके लिये गौण बान थी वे संन्यात उत्तर-~साधकावस्था में अवश्य थे लोग योगी कहे जा सकते हैं। सन्यासी थे.पर उनका संन्यास कर्मयोगी बनने प्रश्न-जिस व्यक्ति ने कुज्ञ कुटुम्ब या धन की साधना मात्र या जिस तरह की समाज पैसे का त्याग कर दिया पिसा त्यागी वास्तव में मवा ये करना चाहते थे उसके लिये कुछ वर्षों संन्यासी ही है वह जनसंवा करे तो भी उसे क वैसा संन्याली जीवन विताना सही था। कर्मयोगी कसे कह सकते है. कर्मयोगी तो गृहस्थ इसलिंग बनग संन्यास कर्म को भूमिका होने से ही हो सकता है। नमशेन में ही शामिन समझना चाहिये। उत्तर-कर्मयोग सा संकुचिन नहीं है पान-घर से तो ये लोग आत्मशाति के कियह किसी पाश्रम की सीमा में रुक जाय ।
SR No.010834
Book TitleSatyamrut Drhsuti Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatya Samaj Sansthapak
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1951
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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