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________________ धामिकांड [१] . . . - . - -. होगा। यदि कला से विपयान्धता पैदा होजाय, होसकती है। ज्ञान की साधना करके महत्व जगत का कल्याण होने लगे तो वह दुःसुख प्राप्त करना चाहिये। परन्तु यदि इससे श्रात्मकहलायगी, ऐसी कला का और उसके महत्व का गौरव नहीं अहंकार आया, बदमाशी करने की स्याग ही करना चाहिये। योग्यता बढ़ी और उससे पाप बढा, कृतघ्नता शक्तिदिगो इमानुसार परिवर्तन आइ तो यह दुःसुख होजायगा। करने में या परिवर्तन को रोकने में जो साक्षात १०-सौंदर्य (हरो) शरीर की आकर्षक और मुख्य कारण है ऐसी योग्यता को शक्ति रचना का नाम सौदर्य है। यद्यपि सौदर्य शब्द कहते हैं। शक्ति शरीर की भी होती है वचन की का अर्थ आकार और रंग की अच्छाई है अर्थात सिर्फ भाग्य का विषय ही सुन्दर समझा जाता है भी होती है मन की भी होती है। इसकी विशे पर यहा किसी भी इन्द्रिय था सब इन्द्रियों के पता यह है कि इसके महत्व को सरलता से अच्छे विषय से मतलब है इसलिय सौंदर्य अस्वीकार नहीं किया जासकता, क्योकि इसका व्यापक अर्थ लहरो ] में है। इसका अधिकांश परिचय प्रत्यक्ष निलसकता है। इसके महत्व का। महत्व जन्मजात है फिर भी शरीर को स्वच्छता अनुभव करना और उसका आनन्द लेना साधा. स्वास्थ्य सुव्यवस्था से सौंदर्य की वास्तविक रणत: तो बुरा नहीं है किन्तु यह अन्याय का, साधना की जासकती हैं। ,गार मो बहुत मर्याअविनय का कारण न होजाय इसका ध्यान दिन होना चाहिये। अधिक श्रृंगार सौंदर्य का रखना चाहिये । नहीं तो यह दु.सरख होजायगी, प्रदर्शन नहीं करता सिर्फ विभय का प्रदर्शन पाप होजायगी। करता है या किसी गमारू मनोवृत्ति का प्रदर्शन साथ ही यह भी न भूलना चाहिये कि तन करना है। ऐस श्रृंगार से बचना चाहिये। की शक्ति से वरन की शक्ति का और वचन की किन्तु सुव्यवस्था सफाई आदि से सम्बन्ध रखने शक्ति से मन की शक्ति का महत्त्व अधिक है। वाले और अपव्यय रूप न बनने वाले अंगार तन की शकि. तो पशुओं में भी पाई जाती है पर मे कोई बुराई नहीं है। सौंदर्य चाहे कृत्रिम वचन शक्ति, चित मात्रा में मनुष्य मी गेमेक ] हो चाहे अकृत्रिम (गेमिक, अममिक) और वचन शक्ति को प्राय: हराएक मनुष्य म उसका महत्वानन्द तब तक बुग नहीं है जब तक होती है पर मन शक्ति के लिय प्रतिमा विद्वत्ता वह समय शक्ति और अर्थ का अपव्यय न करे चिन्तन धारणा संयम आदि अनेक गुणो की और जिसके कारण छैलापन का परिचय न साधना करना पड़ती है । यो अपने अपने आत्रा मिले। मर पर सभी शसियाँ महान है फिर भी असाधा ___कुछ लोग अपने को साधु तपस्वी त्यागी गना, अधिक उपयोगिता और जीवन के __ आदि बताने के लिये इस व्यापक सौन्द्रय विकास की दृष्टिस तनस बचन और वचन से लहरों की तरफ उपना बताते हैं । गंदे रहना, ' मन की शक्ति अधिक महान है। अस्तव्यस्त रहना इसको चे वैराग्य आदि की ह-ज्ञान | इगो-शास्त्र विचार या अनु- निशानी समझते है पर यह या तो दंभ है या भत्र से पाय हा नानको विद्या[बुधो कहते है मूढता । अस्तव्यस्तता, गंदापन आदि योग्य और समझने या विचार करने की शक्ति का कारण से क्षन्तव्य कहे जासकते है पर ये प्रशंसनाम बुद्धि बानो ] हैं। ये दोनो ही ज्ञान है नीय नहीं कहे जासकते, न त्याग वैराग्य लाधुता और नाना से ही महत्व मिलता है। हा । यह के निशान माने जासकते है। सौन्दर्य का महत्वाकहा जासयाना है कि बुद्धि जन्मजान होती है नन्द वहीं चुरा कहा जासकता है जहा उसका और विद्या प्रयत्न से, साधना से, प्राप्त की जाती उपयोग दुराचार आदि के बढ़ाने में किया हो। है। विद्या के द्वारा बुद्धि भी काफी मुसंस्कृत वा वह दु सुग्ध है इसलिये त्यागने योग्य है।
SR No.010834
Book TitleSatyamrut Drhsuti Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatya Samaj Sansthapak
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1951
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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