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________________ रिकांड २७ m - - - -. wana -- - - - - - - - - -- - - - - - - नही तो वह दुःसगा होजायगा, पाप होजायगा। मे ही अनुभव कर सकता है जो उसके मरने के १-कुज [जो]-जन्मसे सम्बन्ध रखनेवाले बाद या मरने के सैकड़ो वर्षों बाद मिलनेवाला जनसमुदाय का नाम कुल है। मैं अमुक कुटुम्ब में है। इसलिये यश का महत्वानन्द वर्तमान के पैदा हुआ है. मेरे बाप मा चाचा मामा आदि लोगा से ही सम्बन्ध नहीं रखता किन्तु असीम इतने महान है, मेरी जाति गोत्र भाटि उच्च हैं भविष्य और असीम क्षेत्र से भी सम्बन्ध श्रादि कुनका महत्व है। जातिशत काफी व्यापक रखता है। बल्कि सच्चे यश की कसौटी यही है। देश श्रादि के अनुसार भी जानिभेद वनजाता भविष्यकाल या महाकाल है। सच्चा यश तीन हैं और इसके महत्व का भी आनन्द श्राना है। बानापर निर्भर है। १-अपने द्वारा किया गया मैं अमुक प्रान्त का हूँ या अमुक देश का हूँ पर लोकहित, २-लोकहित के लिये किया गया त्याग, अमुक रंग की जाति का हूँ आदि का महत्व भी -अशोलाभ की गौणता। असाधारण योग्यता कुल का महत्व है। यह महत्त्व अच्छा महत्व नहीं भी आवश्यक है पर इसके द्वारा यश की मात्रा है, इसका उपयोग न करना चाहिये । जिस मनुष्य ही बढ़ती है, क्योंकि असाधारण योग्यता से में गुण है योग्यता है वह एस महत्वो की पर्वाह लोकहित विशेष रूप में होता है। अगर अपनी नहीं करता। गुणहीन अयोग्य व्यक्ति ही से माधारण शक्ति का उपयोग उपयुक्त तीन बातो के अनुसार किया जाय नो असाधारण योग्यता निकम्मे महत्वों का सहारा लिया करते हैं। इस बना भी सच्चा यश मिन्नसकता है। हा। लिये साधारणत यह ह मुग्ध है। हा 1 मल्सम्ब के रूपमै भी यह महत्त्व कमी कभी काम पास उसकी मात्रा कम रहेगी क्योकि योग्यता कम होने से लोकहिन कम होपायगा । और । यश की कता है जब कि इसका उपयोग बुगई को दूर मात्रा बढ़ाने के लिय असाधारण योग्यता मले करने के लिये किया जाय। जैसे कोई यह सोचे ही आवश्यक हो, पर उसकी सच्चाई के लिये कि “ मैं अमुक का बेटा हूँ अमुक प्रान्न या राष्ट्र का हूँ फिरमा पनित काम क्यो काम । इस उपयुक तीन बात जरूरी है । लोकहित के आधार प्रकार महत्वानन्द यदि पाप से, युग में बचने पर तो यश खड़ा ही होता है पर जब उसके में सहायक होजाय तो यह सल्मुग्ध कहलायगा, लिय त्याग और जुडजाना है तब उसमें चमक अन्यथा दु सुम्य तो है ही। आजाती है। पर त्याग से भी अधिक जारी है यशोलाभ की गौरगना । यश मार की तरह है जो - किसोलोगा के हग में अपने गले में सी बाचकर बन्दर की तरह मचाया विषय में जो आदरभाव है यह यश है। यश का नहीं जासकता. वह प्राकृतिक कारण मिलनेपर आनन्द बुग नहीं है पर यश प्रानि की कला सारही नाचना है। अगर यह मालूम होजाना और उसके लियं यानश्यक मयम कठिन है। है कि तुमने यह काम यश के लिये किया है तो साथ ही यश की पहिचान भी कठिन है। चार यश का पांचा इससे सलग जाता है। लोग इसनिन की वाहवाही का मलिन और क्षणिक यश लिये यश देना चाहते हैं कि हमने जो लोगों की का महत्व बहुत कम है पर लोग इसी में भूल संवा की. उसका बदला लोग धन-सम्पत्ति आदि जाते है । ईसा यादि महामाओं का यश आज किसी भौतिक प्रतिदान के द्वारा नहीं चुका मक हजाग वर्ष चीनजाने पर भी मंसारख्यापी है जब या पूरी तरह नहीं चुका सके। इसलिए उनके कि उनके जीवन में शायद माधारण शासक का मन में एक तरह का कृतज्ञता का भाव पैदा होना यश भी उनसे अधिक रहा हो। पर इसलिये हैं। यही अश है। पर अगर यह मालूम होगय साधारण शासक इमा आदि महात्माओ से कि सेवा काना तुम्हाग लक्ष्य ना सिर्फ यश अधिक यशस्वी न कहे जायेंगे। जो मनुष्य दूर- मुलगा था, तब लोगों के दिल में मेवा के प्रति दी है वह उस यश के अानन्द को अपने जीवन कृतज्ञता कम होजाती है। वे यह भी सोचते है
SR No.010834
Book TitleSatyamrut Drhsuti Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatya Samaj Sansthapak
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1951
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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