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________________ अधिकांड । रहती है निजि नहीं होती। उसकी पूर्ति से प्रकरण में नहीं आसकता, इसलिये यहा तो एक अनिर्वचनीय आनन्द मिलता है। बहुत से उपाय विचार की कुछ दृष्टि हो जाती है। यह लोग इस श्रानन्द के लिये सारी धनसम्पचि विवेचन भूमिका का काम करेगा। अधिकार तथा सर्वस्व देवालते है, तथा मरने के यद्यपि दुःख बुरी चीज है और मुख मली. बाद नाम के साथ महत्व लगारहे इसलिये जावन परन्तु इसका विचार आगे-पीछे का, निजपर का तक देडालते है। इसलिये कहना चाहिये कि सबस टोटल मिलानेपर ही किया जासकता है । इस अधिक कीमती सुख यह महत्त्वानन्द है। दृष्टि से न तो सब दुःख चुरे कहे जासकते हैं न रौद्रानन्द (डिटो शिम्मो)-सौहानन्द में सब सुख अच्छे । जो दुःख अधिक सुन्य एक तरह की क्रूरता है इसलिये इसे करानन्द पैदा करें वे अच्छे कहे जायेंगे | जो सुम्ब अधिक या पापानन्द कहना चाहिये। दूसरो को निरपराध दुःख पैदा करे वे बुरे कहे जायेंगे । इमप्रकार दुःखी होते देखकर सुखी होना रोदानन्द है। दुम्ब-सुख की तीन-तीन श्रेणियाँ हाँगी । जानवरों को लड़ाना और एक के या दोनों के घायल होने या मर जानेपर सुखी होना मी रौद्रा १-सुखबीज दुख सुखबीज सम्य २-अवीज दुःख अबीज सुत्र ____प्रश्न-समाज को सतानेवाले किसी आत ३-दुःख बीजदु र दुःखबीज सुग्य तायी मनुष्य या पशु को दण्ड दिया जाय और जो दु.ख सुख पैदा करता है और दु.खसे दण्ड देसकने से एक तरह का सन्तोष हो, जैसे अधिक सुख पैदा करता है वह सुग्वबीज दुःश्य पापी रावण के मारे जानेपर जनता को हुआ, है, और अच्छा है। अच्छा होने के कारण इसे तो क्या इसे पापानन्द कहा जायगा ? बुरा कहा सदुख (सुदुक्सो) कहना चाहिये। जैसे सहजायगा ? पर इसके बिना अन्याय-अत्याचार का वेदन दु.स्य जगत्कल्याए को पैदा करनेवाला नाश कैसे होगा। है इसलिये सद्दुःख है । संयम सुतप आदि के उम्तर-निरपराधों को दुःखी देखकर जो दुश्व भी इसी श्रेणी के हैं। आनन्द होता है वह रौद्रानन्द है, सापगधी को। - जो दुव भविष्य मे न सुम्य बढ़ाने वाला दुखी देखकर होनेवाला आनन्द रोद्रानन्द नहीं होन दु.ख बढ़ानेवाला । भोगने के बाद जिसकी है। सापराधो को दुखी देखने में सामाजिक समाप्ति होजायगी, ऐसे दुश्व को अचीज दुस व्यवस्था तथा न्यायरक्षण का सन्तोष है, सब क या फलदाय ( फावक्यो ) कहना चाहिये । हित की भावना है इसलिये इसे प्रेमानन्द कह सहवेदन दु.ख्य को छोडकर साधारणत: ममी सकते हैं। फिर भी इसका विचार मन की दुःख फन्दु.ख कहे जामत है या बनाये जामभावनापर निर्भर है। एक आदमी को अपराध के प्रतीकार. या न्यायरमण का विचार नहीं हैं सिर्फ दुःखबीज दुस उसे कहते हैं, जो वनगान अपराधी की तड़पन देखने का ही आनन्द है, मतो दुखरूप है ही और भविष्य भी कर उसकी निरपराधता सापराधना से भी उसे कोई इ बढानेवाला है. या दूसरे को दुःख देनेवाला है। मतलब नहीं है, तो वह अपगधी के दुख में सुखी साधारणत सहवेदन को छोड़कर अन्य रोई भी होनेपर रौद्रानन्दी कहलायगा। दे. इस श्रेणीका बनाया जाता है। यह मय में उपाय विचार ( रहो ईको) बुराव है इसलिये इमे दर (स्यागे. दुःखों को दूर करने और सुग्यों को पाने का कहना चाहिये। उपाय सोचता उपाय विचार है । इस प्रकार जो सस भाचप्य में भी मग देनेवाला . सारा सत्यामृन उपाय विचार ही है जो कि हम वह नुन वीजमन्त्र है। प्रेमानन्द मी प्रकार
SR No.010834
Book TitleSatyamrut Drhsuti Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatya Samaj Sansthapak
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1951
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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