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________________ दूसरा अध्याय ध्येय दृष्टि अंतिम ध्येय (लुल नीमो ) निष्पक्ष परीक्षक और समन्वयशील बनने मनुष्य सत्यदर्शन की पात्रता आजाती है, BF से पहिले ना है वह है जीवन का ध्येय । जीवन का येय निश्चित होजानेपर मार्ग ढूढ़ने और समनेमे सुविधा होती है। ध्येय और उपध्येय (नोमो श्रं फूनीमो ) जीवन का ध्येय यनेक शो में कहा जाता है। जैसे - वतंत्रता, मुक्ति, ईश्वरप्राप्ति, दु. सनाथ, यश, वैभव, सुख हि। अगर व्यापक और गहराई से farer foया जाय तो किसी भी ध्येय से मानव जीवन सफल होसकता है, फिर भी जब तक ध्येय और उपध्येयो को ठीक तौर से न समम्मलिया जाय मनुष्य के गुम राह होने की काफी आशंका रहती है। इसलिये 'तिम ध्येय और उसे पाने के लिये जिस जिस को पहिले प्राप्त करना हो वह उपध्येय तर से सम लेना चाहिये। ध्येय और रुपये में जहा विरोध हो वहा उपध्येय को areer air at rearraाहिये। इस दृष्टि से रहना चाहिये कि 問 गानप होषंगो (नीमो लंको ) नही होती। एक आदमी नौकरी करता है तो हम पूछ सकते हैं - नौकरी किसलिये १ उत्तर मिलेगापैसे के लिये । पैसा किसलिये ? रोटी के लिये । रोटी किसलिये १ जीवन के लिये । जीवन किसलिये ? सुख के लिये । इसके वाद प्रश्न समाप्त 1 मुख किसलिये यह नहीं पूछा जाता इसलिये सुख अन्तिम ये कहलाया । गं १ विश्ववर्धन हमारा ध्येय है। ला २- स्वतन्त्रता, मुक्ति, ईश्वरप्राप्ति, स्वर्ग, यदि उपध्येय हैं। ध्येय के लिये उपध्येय है इसलिये उपध्येय भोग से कमर कसते रहना चाहिये । उपायंग के लिये एम पृ सकते हैं कि वह किसयह पूने की जरूरत पर 1 स्वतन्त्रता उपध्येय (सुच्चो फूनीमो ) प्रश्न -- ध्येय और उपध्येय के निर्णय की एक कसौटी यह है कि परस्पर विरोध होनेपर ध्येय के लिये उपध्येय का बलिदान कर दिया जाता है। देखा जाता है कि कभी कभी स्वतन्त्रता के लिये सुख का बलिदान कर दिया जाता है । अनेक जनसेवक या देशसेवक स्वतन्त्रता के लिये अपना सुख छोड देते हैं वे जेल और मृत्युदण्ड को स्वीकार कर लेते हैं पर स्वतन्त्रता को नहीं छोड़ना चाहते । उत्तर- इसमे ध्येय और उपध्येय का प्रश्न नहीं है किन्तु किसी एक ही बात की मात्रा कान है। यहा देश के सुख के लिये अपने सुख का बलिदान है, देश की स्वतन्त्रता के लिये अपनी स्वतन्त्रता का बलिदान है। जो आदमी जेल जाता है उसकी स्वतन्त्रता चाहर रहने की अपेक्षा बिन ही जाती है, इसलिये देश के सुख के लिये यह स्वतन्त्रता का बलिदान कहलाया । खैर । इसे चाई स्वतन्त्र का बलान कहो, चाहे सुख का चलिगन कहो मुख्य बात में समाज के सुब के लिये व्यक्ति के सुख का दान है। 1 जीवन में इसप्रकार के अनुभव चारचार है जिससे मालूम होता है कि स्वतन्त्रता के
SR No.010834
Book TitleSatyamrut Drhsuti Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatya Samaj Sansthapak
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1951
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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