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________________ [3] ही या लिखी जारही हैं ऐसी बातो को समझ शेचकर मारा मानना चाहिये। जैसे ठंडे या म युद्ध के समय में एक राष्ट्र के समाचार पत्र विरोधी राष्ट्र के बारे में खूब झूठी झूठी वाले झापा करते हैं, विज्ञापनदाता लोगों को ठगने के लिये झूठी या अतिशयोक्तिपूर्ण बातें छपवाया करते हैं ये सब बातें साधारणतः तवतक प्रमाण न मानना चाहिये जब तक किसी दूसरे परवल रमाण से समर्थित न होजायें। इसी कार बहुत में लोग भूत-पिशाच की, परलोक की स्मृति की, और भी चमत्कारो की कहानियाँ पत्रों में छपवाया करते हैं ये सब अन्धश्रद्धा, साम्प्रदायिक पक्षपात आदि के कारण असत्य होती है। इन्हें प्रत्यक्षोपम शास्त्र तो किसी भी तरह नहीं कह सकते किन्तु साधारण शास्त्र कोटि मे भी मुश्किल से डाल सकते हैं। साधारण शास्त्रों की अपेक्षा प्रत्यक्षोपम शास्त्रों की प्रामाणिकता अत्यधिक या कई गुणी है। सत्यामुत रु प्रत्यक्ष का उपयोग ( इन्दो उशो ) सबसे अधिक बल ना पत्यक्ष है बाकी दूसरे प्रमाण रत्यक्ष के सहारे ही खड़े होते | वस्तु के साथ निकटतम सम्पर्क इसी का होता कान नाक जीभ और स्पर्शन इन्द्रिय से जो ज्ञान होता है उसमे विवाद की कम से कम गुश रहती है। दूसरे पमाखी की 'रामागिता की न्ति जाय भी प्रत्यक्ष से की जाती है। | फिर भी इसका ठीक ठीक उपयोग करने के लिये सागर का ध्यान श्रवश्य रखना चाहिये । nir के निना प्रत्यक्ष को ठीक समगा भी मना । सूर्यचन्द्र ने करीब करीब दिवाई देते हैं जबकि चन्द्र से सूर्य है। चन्द्रम सिर्फ ाई राम और 1 इस दुर्ग के ← 1 नील, दोनों लिई रामू में भी जाना पर दूर होने से सूर्य से बहुत छोटे और निष्प्रभ दिखाई देते है। इस दूरी के कारण भूतकाल की भी घटना वर्तमान रूप होती है। सूर्य से यहा तक प्रकाश आने में करीब सात आठ मिनिट लगते हैं इसका मतलब यह हुआ कि सूर्य उदय होने के सात काठ मिनिट बाद हमे ऊगता हु दिखाई देता है, इसी प्रकार अस्त होजाने के सात आठ मिनिट बाद अस्त होता दिखाई देता है । इसप्रकार सात आठ मिनिट का भूत हमारे लिये वर्तमात होता है। श्रासमान मे जो तारे हमे जिस रूप में दिखाई दे रहे है वह उनकी वर्तमान अवस्था नही है किन्तु सैकड़ों हजारो वर्ष पुरानी अवस्था हमें इस समय दिखाई दे रही है । वे इतने दूर हैं कि एक लाख छयासी हजार मील प्रतिसे किएड के हिसाब से चलनेवाला प्रकाश यहा तक सैकड़ो वर्षों में आपाता है, इसलिये सैकड़ो वर्ष बाद हमे उनकी अवस्था दिखाई देती है । सिर्फ आख के प्रत्यक्ष मे ऐसा अन्तर पडता है सो बात नहीं है, हर एक इन्द्रिय के प्रत्यक्ष में यह बात होती है। श का अन्तर तो हमें तुरंत मालूम होता है। कई मील दूर किसी पहाड़ की चोटो से तोप दागी जाय तो प्रकाश की गति तीव्र होने से उसका धुआँ तो तोप चागते ही दिखजायगा किन्तु उसका शब्द कई सेकिण्ड बाट सुनाई देगा क्योंकि शब्द की गति हवा में प्रतिसकिएड सिर्फ १०९० फुट ही है । भिन्न भिन् माध्यमो से श के आने मे काफी अन्तर पड़ता है इसलिये उनके सुनने से सी अन्तर पडता है। १६६२० फुट का शुद्ध अगर लोहेकी पटरी के मान्यम से सुना जाय तो एक संकिण्ड बाद ही करीब साढ़े पन्द्रह सेकिएड लेगा। जबकि बिजली सुन लिया जायगा किन्तु वही शब्द हवा के जरिये के माध्यम से किसी शक का प्रसारण किया जाता तब हजारो मील दूर से आने पर भी एक सकिएड भी नहीं लेता । इसप्रकार शब्द भी अपनी दूरी के कारण भूत वर्तमान में गडबडी पैक 1
SR No.010834
Book TitleSatyamrut Drhsuti Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatya Samaj Sansthapak
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1951
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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