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________________ सत्यामृत - - .-'द्र परीक्षा (राफ दिजों) ओ प्रति साहित्यिक जगत में जो बड़े बड़े पारितोम्पा भाव से किसी की शक्ति योग्यता आदि की पक रक्खे जाते है उनमें भी जो साहित्यिक जाच की जानी है वह हर परीक्षा है। दो पहिल. कृतियों की परीक्षा की जाती है वह भी इसी वान जर युती करते है, दो पडिन जब कमरे कोटि की परीक्षा है। विख्यात और कभी कमी को जीनने की इच्छा से वादविवाद करते हैं तब सर्वश्रेष्ठ साहित्यिको की रचनाओं की जाच करने द्व परीक्षा होती हैं। के लिये जो परीक्षक मण्डल बनाया जाता है इस परीक्षा भी दो कप है। उसके सदस्य पारितोपक पानेवाले से प्राय बड़े प्रगट दुसरा प्रसन्न । प्रगट दुद परीक्षा में प्रति- नही होते, या अपवाद रूप में ही बड़े होते है, सहा का भाव घोपित या नगद रहता है पर इसलिये बालोचन-परीक्षक होने से कोई परीक्षा प्रन्दन्न परीक्षा में यह भाव दया हाया से महान होजाता है ऐसा नियम न समझना अमट रहना है । एक विद्वान के सामने कोई चाहिये । इस दृष्टि से पुराने शास्त्रा की बालोचन जिलामु की तरह प्रश्न करता है पर मनम प्रति परीक्षा करने से परीक्षक वा होजाना है और पहा का भाव रखता है, चर्चा में प्रतिस्पर्दा को इससे पुराने शास्त्रकारों का अपमान होता है यह तरह हठ विनय श्रादि का गोडा बहुत परिचय समझता भूल है। भी दजाना है, या बाहर से अपना भाव प्रगट व्यवहार में और भी आलोचन परीक्षाएँ नहीं होने देता पर भीतर प्रतिसद्ध का मात्र होती हैं। जो जिस विषय में स्वयं कुछ नहीं कर रगता है तो उसे प्रन्दन दूल परीक्षा कहते हैं। सकता, पर उसकी जाच अच्छी तरह कर सकता प्रापि अन्य परीक्षाएँ भी प्रच्छन्न परीनामकती हैं पर अधिकतर द्वन्द परीक्षा में गान न जाने या करें गधैव स्वर में गान। र प्रसन्न रप का उपयोग होता है। वे भी ता है जाचते तानसेन की तान !! 3-आलोचनपरीक्षा (हृदिउज वितो ) समा अगर रसोई में मिडे कररे सत्र बर्वाद । लोचक की हैमियत से अब किसी की कृति की परन जाच मे चूकते लेकर नाना स्वाद ।। बारपस्य की जाती है तब वह पालोचन परीक्षा सीधी रेवा खीचना जिन्हें नहीं है यान्ट । फाहलाती है। ममालोचक का स्थान समालाच्य चित्रकला के पार की बनन में उमा शनि के कर्ता से न चा कहा जासकता है न इसीप्रकारगीचा, न गवगे का। सभी तरह के श्रादमी धर्मशास्त्र निर्माण की भले नहीं हो शक्ति । समालोचक होते है। हां ! साधारणत यह कहा तो भी जाच न है कठिन रख विवेकमे भक्ति । आमना है कि प्रत्यायन की अपेक्षा उसकी तुम क्यो चिन्ता कर रहे क्यों बनते हो दीन । समालोगना का काम नीची श्रेणी का है। समा. ___ को परीक्षा धर्म की बनो त्रिवयीन ॥ मोरमका यान और योग्यता किमी गास प्रसंग आलोचन परीना के इस विवेचन से पता पर ची में भी होसानी है. क्योंकि साधारण लगजाता है कि इस तरह की परीक्षा में परीक्ष्य थागी कमां की कृतियों को समालोचना का अपमान नहीं होता, न उसपर लघुना की कमी गमी नेगक मे पार चेक विद्याना छाप मारी जाती है इसलिये शास्त्री की पों भी सना पनी तिमी किमी प्रन्थ- आदि की सी परीक्षा की जासकती है। foriT में जितनी योयना अनिवार्य है -उपपरीना ( फदिजो )जिस परीक्षा मे गनी गोपना पालोगना के शाम पनिार्य प्रत्यक्ष परीक्षक धास्तव में परीक्षक नही तोना मगि मा ममानोपामियन मि. उसका दुत या प्रतिनिधि मात्र होता है यह माना जामरना यकि वि. उपना है। इस परीक्षा में भी परीक्षक का Miniमाना है। पर सपना अधिक योग्य होने का नियम
SR No.010834
Book TitleSatyamrut Drhsuti Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatya Samaj Sansthapak
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1951
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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