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________________ [२४२] सत्यामृत - - श्रीकृष्ण की मौत जरत कुमार के हाथ से होगी। मे किसी ऐसी वस्तु का मिल जाना जिससे भून अस्तु कुमार श्रीकृष्ण को प्यार करते थे इसलिये वस्तु की उपयोगिता कम हो जाय या नष्ट हो उन्हें बड़ा खेद हुआ और उनके हाथसे श्रीकृष्ण जाय वह अशुद्धि है और मूल की तरह उपयोगी की मौत न हो इसलिये बगल में चले गये । पर बना रहना शुद्धि है। जैसे पानी में मिट्टी धून जगल से चला जाना ही जरत्कुमार के हायसे आदि पड़ जाने से उसकी उपयोगिता कम हो श्रीकृष्ण की मृत्यु का कारण हुआ। अगर भविष्य जाती है इसलिये वेह अशुद्ध पानी कहलाता है। वाणी के फेर मेन पडते तो ये दुर्घटनाए न होती। शुद्धि-अशुद्धि का व्यवहार सापेक्ष है। किसी एक तो ये भविष्यवाणिया कल्पित हैं और अगर दूसरी चीज के मिलने पर कभी कभी हम उसे तध्यरूप होती तो मी अनर्थकर थीं। शुद्ध कह देते हैं, कभी कभी अशुद्ध । जैसे शकर हर एक मनुष्य को चाहिये कि वह महान मिला हुआ पानी या गुलाब केवडा आदि से बनने की कोशिश करे। वह मानले कि मैं तो सुगन्धित पानी शुद्ध कहा जाता है परन्तु जहा कर, सम्राट राजा, अध्यक्ष, महाकवि, महान दार्श. पानी का उपयोग मुंह साफ करने के लिये करना निक, महान वैज्ञानिक, कलाकार, पौरादि बन हो वहा शकर का पानी भी अशुद्ध कहा जायगा। सकता हूँ। वह इनमे से एक बात सचि के अन- ऐसी बीमारी में पानी का उपयोग करना हो सार चुनले और यत्न करने लगे। अगर देव जिसमें गुलाब और केवडा नुकसान करें तो प्रतिकूल है तो वह अपना फल देगा और हमारा गुलाव-जल आदि भी अशुद्ध कहे जायेगे। पल निष्फल करेगा पर जितने अश में देव यत्न साधारणनः शुध्दि के तीन भेद हैं। -- को निष्फल बनायगा उससे बचा हुआ अल निर्लेप शुद्धि ल्पलेप शुध्दि ३ उपयुक्त सफल होगा। सजा यल सर्वथा निष्फल नहीं शुद्धि । जाता । भविष्यवाणी, भवितव्यता आदि के फेर निर्लेप शुधि (नोमेश शुधों) उसे कहते हैं में पडकर वह उनासीन या हतोत्साहन वने, जिसमें किसी दूसरी चीज का अणुमात्र भी यत्न बराबर करता रहे। असफलता होनेपर पय- अंश नहीं होता । जैसे जैन साख्य आदि दर्शनों राये नहीं, सिर्फ यह देखले कि फही मुझसे भूल के अनुसार मुक्तात्मा। इस प्रकार के शुद्ध पदार्थ तो नहीं हुई है। अगर मूल न हो तो दैव के कल्पना से ही समझे जा सकते है । भौतिक विरुद्ध रहने पर भी कर्तव्य परता रहे। यत पदार्थों को निर्लेप शुद्धि का भी हम कल्पना से शक्ति के अनुसार ही करे पर हतोत्साह होकर विश्लेषण कर सकते हैं। शक्ति को निकम्मी न बनाये। वह यत्न-प्रधान र अल्पलेप शुद्धि (वेमेश शुधो) में इतना कम व्यक्ति देव के विषय में अज्ञानी नहीं होता, सिर्फ मैल होता है जिस पर दूसरे पदार्थों की तुलना में उसकी अवहेलना करता है, अथवा देव को अपना पेक्षा की अरती है। जैसे गंगाजल शुद्ध कहा है। काम करने देता है और वह अपना यत्न करता इस का यह मतलब नहीं है कि गंगाजल में मैल है। आउ मानव समाज पशुओं से जो इतनी नही होता, होता है, पर दूसरे जलाशयों की उन्नति पर पहुँचा है इसका कारण उसको यत्न अपेक्षा बहुत कम होता है । साधारणत अल में प्रधानना है। जितना मैल रहा करता है उससे भी कम मैल हो ११-शुद्धि-जीवन [ शुधो जियो] तो उसे शुद्धजल कहते हैं यह अल्पलेप शुद्धि है। ३-उपयुक्तशुद्धि (पुग्मशुधो)का मतलब यह चारभेट है कि जिस शुष्ट्रि से उस वस्तु का उचित उप. रियो दृष्टि में भी जीवन को योग होता रहे । यह शुदिय देसरी चीजों के ___ अयनानि का पा लगता है। किसी वस्तु मिश्रण होनेपर भी मानी जाती है जैसे गुलाब
SR No.010834
Book TitleSatyamrut Drhsuti Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatya Samaj Sansthapak
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1951
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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