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________________ राष्ट्रका पर वे मन्दिरों के महन्तों के सामने सात्विक युद्ध सकता परन्तु साधारणतः अपनी आवश्यकता करते थे, कुरूढ़ियों को नष्ट करते थे। इधर उनकी को पूर्ण करने वाला, नई परिस्थितियों के दीनसेवा इतनी अधिक थी कि नारीत्व अपना अनुकूल हो सकने वाला, समन्वय अवश्य होना सार माग लेकर उसमें चमक उठा था। चाहिये। बुद्धि भावना का समन्वय तो आवश्यक हजरत महम्मद का योद्धा-जीवन तो प्रसिद्ध है ही। इसी तरह शक्ति [ फिर वह शारीरिक, ही है पर क्षमा-शीलता, प्रेम आदि नारीत्व के वानिक या मानसिक कोई भी हो] और , गुण भी उनमें कम नहीं थे। गृहकार्य में तत्परता व्यवस्था का समन्वय भी आवश्यक है। थोड़ी तो उनमें इतनी थी कि बादशाह बन जानेपर भी बहुत न्यूनाधिकता का विचार नहीं है पर दोनों वे अपने ऊँट का खुरेग अपने हाथों से ही अश पर्याप्त मात्रा में हो तो वह उभयलिंगी करते थे। जीवन होरा । लैंगिक दृष्टि स यह पूर्ण मनुष्य है। ___और भी अनेक महापुरुषों के जीवन को नर और नारी के जीवन का व्यावहारिक देखा जाय तो उनका जीवन उभयलिंगी मिलेगा। रूप क्या होना चाहिये इस पर एक लम्बा पुराण जिनमें ये दो बातें हैं, एक तो वह प्रेम, जिससे बन सकता है। इस विषय में यथाशक्ति थोड़ा वे जनसेवामें जीवन लगाते हैं नारीत्व] दूसरे वह व्यवहार कार में लिखा जायगा। यहा तो सिर्फ बुद्धि और शक्ति जिससे वे विरोधियों का सामना यह बताया गया है कि नर नारी के जीवन के करते हैं (पुरुषत्व), वे उभयलिंगी महापुरुष हैं। विषय में हमारी दृष्टि कैसी होना चाहिये ? नर पन-अगर इस प्रकार धुद्धि भावना के नारी व्यवहार के अच्छे बुरेपन की परीक्षा जिस समन्वय से ही मनुष्य उभयलिंगी माने जाने दृष्टि से करना चाहिये वही दृष्टि यहा बताई V लगेंगे तो प्राय: सभी आदमी उभयलिंगी हो गई है। जॉयेंगे। क्योंकि थोड़ी बहुत बुद्धि और भावना १०-गलजीवन (घटो जिवो) समी में पाई जाती है। , ___ उत्तर--एक भिखारी के पास भी थोड़ा [तीनभेद] बहुत धन होता है पर इसी से उसे धनवान नहीं कहते । धनवान होने के लिये धन काफी मात्रा में बच्चा प्रायः अन्य सब जानवरो की अपेक्षा अधिक होना चाहिये। इसी प्रकार 'बुद्धि और भावना कमजोर और असमर्थ होता है। गाय भैंस का अहा काफी मात्रा में हो और उनका समन्वय हो बच्चा एक दिन का जितना ताकतवर, चञ्चल वहीं उमयलिंगी जीवन समझना चाहिये। और स्वाश्रयी होता है उतना मनुष्य का बच्चा प्रश्न--क्या बुद्धि-भावना-समन्वय से ही वर्षों में भी नहीं हो पाता । फिर भी मनुष्य का उभयलिंगी जीवन बन जायगा ? जो मनुष्य बच्चा अपने जीवन में जितना विकास करना है 4 खियोचित या पुरुषोचित आवश्यक काम भी- उतना कोई भी दूसरा पाणी नहीं कर पाता। नहीं कर पाता क्या वह भी अभयलिंगी जीवन पशुओं के विकास के इस किनारे से उस किनारे वाला है। में जितना अन्तर है उससे बीसों गुणा अन्तर उत्तर-नहीं, हम जिस परिस्थिति में हैं मनुष्य के विकास के इस किनारे से उस किनारे उससे कुछ अधिक ही स्त्रियोचित और पुरुपोचित तकाहै। इतना लम्बा फासला दूर करने के लिये कार्य करने की क्षमता हमारे भीतर होना चाहिये मनुष्य को पशुओं की अपेक्षा बीसा गणा यल्ल क्योंकि परिस्थिति बदल भी सकती है। इस भी करना पड़ता है। इसलिये मनुष्य यमरधान विषय का कोई निश्चित माप तो नहीं बनाया जा राणी है। इसके जीवन में जानवरों के समान
SR No.010834
Book TitleSatyamrut Drhsuti Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatya Samaj Sansthapak
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1951
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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