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सत्यामृत
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उसमें मुख्य है । इसके अतिरिक्त शक्ति और सेवा आदि में वीरता का तथा अन्य अनेक पुरुषोचित का समन्वय, यथासाध्य कला और विज्ञान का गुणोंका परिचय देकर जहाँ पुरुषत्व का परिचय समन्वय, काम और मोक्ष का समन्वय, उपार्जन दिया है वहाँ हास्य, विनोद, संगीत, सेवा, और रक्षण का समन्वय हरएक मनुष्य में होना प्रेम, वात्सल्य श्रादि का परिचय देकर नारीत्व का चाहिये। सुविधा के अनुसार अगर नारी का परिचय भी दिया है । भावना और बुद्धि का उनके कार्यक्षेत्र घर और पुरुष का कार्यक्षेत्र बाहर बना जीवन में इतना सुन्दर समन्वय हुआ है कि उसे लिया गया है तो वह भले हो रहे परन्तु एक असाधारण महा जा सकता है और एक इसी दूसरे के काम में थोड़ी बहुत भी सहायता कर बात से वे उभयनिगी के रूपमें हमारे सामने सकने लायक योग्यता न हो तो यह अधूरा जीवन आते हैं। महापुरुषा का उभयलिगीपन उनकी दुखप्रद होगा । एक दूसरे का काम थोडे बहुत भावना और वृद्धि के समन्वय से जाना जा अंश मे कर सकें ऐसी योग्यता हरएक में होना सकता है, प्रेम और विवेक, सेवा और वीरता चाहिये और जीवनचर्या भी आवश्यकतानुसार का समन्वय भी उभयलिंगीपन के चिह्न है, ये उसके अनुरूप ही बनाना चाहिये। बातें उपर्युक्त सभी महापुरुषों में पाई जाती हैं । ____ प्रभ-जगन में जो रोम, कृष्ण, महावीर, मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामचंद्र जी की वीरता बुद्ध, ईसा, मुहम्मद श्रादि महापुरुप हो गये हैं उन सबके जीवन एकलिंगी पुरुप निंगी ] ही थे
तो प्रसिद्ध ही है। न्यायप्राप्त राज्य का त्याग, फिर मी ये महान हुए, जगव की महान सेना कर
पत्नी के लिये एक असाधारण महान सम्राट् से सका क्या एकलिंगी होने से आप इन्हें अपर्ण युद्ध, प्रजानुरजन के लिये सीता का भी त्याग, या मध्यम श्रेणी का जीवन कहेगे। आवश्यक रहने पर भी और समाज की अनुमति
उत्तर-एकलिंगी जीवन भी महान हो सकना मिलने पर भी एक पत्नी रहते दूसरी का अहण न है। फिर भी वह अादर्श और पर्ण मोडी करना इस प्रकार की भावुकताके सामने बड़ी बड़ी सकता । किसी के पाय अगर लाख रुपये के रोई भावुकतार पानी भरेगी । इस प्रकार म. राम में है तो उसके द्वारा वह पेट भर सकता है, दान में हम बुद्धि, मावना और शक्ति का पूरा समन्वय सकता है, लखपति ऋइला सकता है परन्त पाते हैं । जङ्गल मे जाकर वे बिना किसी सम्पत्ति स्वादिष्ट और स्वास्थ्यकर भोजन लिये उसे और नौकर चाकर के गाईस्थ्यतीवन बिता सके गहू के बदले में दाल चावल शाक नमक आदि इससे उनको गृहकार्यकुशलता मालूम होती है। लाना पड़ेगा । एक लाख के गेहूँ से महत्ता पैदा उनकी प्रामाणिक दिनचर्या का परिचय नहीं होगी स्वादिष्टता और स्वास्थ्य करता नहीं । इसी मिलता, नही तो उनके अन्य कार्य भी बताये जा. प्रकार बहुत से महापुरुष महान् होकर के भी सकते। एकलिंगी होते हैं उनकी महत्ता से लाभ उठानाम महावीर और म बुद्ध तो महान तार्किक चाहिये, आदर्श जीवन बनाने के लिये उनसे लो और क्रान्तिकारी थे, गृहत्याग करके उनने जनसामग्री मिल सके वह लेना चाहिये पर श्रादर्श सेवा का काफी पाठ पढाया था। अपनी अपनी या अनुकरणीय तो उभयलिंगी जीवन है। साधुसस्था में उनने खान पान स्वच्छता आदि
परन्तु उपर जिन महापुरुषों के नाम लिये के बारे में साधुओं को स्वावलम्बी बनाया था। गये हैं उनके जीवन एकलिंगी जीवन नहीं है। वे स्वयं स्वावलम्बी थे। इस प्रकार उनमें पुरुषत्व उनमें सभी के जीवन उभयलिंगी हैं। म कृप्य और नारील का पूग समन्वय था। तो श्रादर्श हाँ हैं। उनने कस वध, शिशुपाल-वध म ईला में पुरुषत्व तो था ही, जिसके बल