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________________ सत्यामृत - - - - - - - - - या निर्लज्ज कहने लगती है। इन बातों का रानियों भी राजाओं की तरह वीरता दिखाती परभाव जैसा नर पर पड़ता है वैसा ही नारी पर। थीं और युद्ध सचालन करती थीं। परन्तु जब दोनों में कोई मौलिक भेद नहीं है। राजा श्रीया और उसे मालूम हुआ कि रानी ने ४-भीमता (डिहीरो)- यह निर्वलता का इतनी वीरता दिखाई है तब उसे बड़ा क्रोध परिणाम है । निर्बलता के विषय में पहिले कहा आया। उसने सोचा कि शीलवती स्त्रियों में जा चुका है। अधिकाश निर्वलता जैसे कृत्रिम है इतनी अक्ल नहीं हो सकती । इससे उसने रानी इसी प्रकार भीरुता भी कृत्रिम है। जहाँ स्त्रियों का महिपीपट छीन लिया। इसके बाद दिव्ययोग अथोपार्जन करती है वहा उनमें भीरता पुरुष से से रानी की शील की परीक्षा हुई और उसमे वह बहुत अधिक नहीं है। सच्ची निकली इत्यादि कथा है। आर्थिक दृष्टि से मध्यम या उत्तम श्रेणी के इस कथा से इतना तो मालूम होता है कि कुटुम्यों में ही यह 'भीरता अधिक पाईजाती है एक दिन शन्नाणियों में वीरता होना पुरुषों की क्योकि अर्थोपार्जन के क्षेत्र में उन्हे बाहर नहीं दृष्टि में शीलभंग का चिह्न समझा जाने लगा था। जाना पड़ता इसलिये बाहर के लिये उनमें मीरता भीरुता की तारीफ होने लगी थी। उनकी वीरता बहुत भागई। इसके अतिरिक्त एक बात यह आत्महत्या | जौहर ) में समाप्त होने लगी थी। और हुई कि इस श्रेणी के पुरुप भी खियों को इस प्रकार जहाँ भीरुता की तारीफ और वीरता अधिक पसन्द करने लगे। क्योंकि नारियों को से घृणा होने लगी हो, वीरता अकुलीनता अपनी कैद में रखने के लिये भीरुता की वेडी (रुजजो) और शीलहीनता (नेमिनो) का सर से अन्छो वेडी थी। इससे पुरुप बिना किसी चिह्न समझी जाने लगी हो, वहाँ नारी अगर विशेष कार्य के नारी की दृष्टि में अपनी उपयो. भीरु हो गई तो उसमें उसका कोई स्वभावदोप गिता सावित करता रहता था। नहीं कहा जा सकता। इतना ही कहा जासकता नारी को भीरु बनाये रखने के लिये भीरुता है कि शताब्दियो तक पुरुपो ने जो पड्यन्त्र किया की तारीफ होने लगी। भोक या वह सफल हो गया। यह नारी का स्वभाव-दोप से अच्छा संबोधन माना जाने लगा। मौरे से नहीं है, कृत्रिम है, शीघ्र मिट सकता है। हरकर प्रेयसी प्रियतम को सहायता के लिये ५-विलासिता (चिंगीरो)- यह दोनों का पुकारती है यह काव्यशास्त्र का सुन्दर वर्णन घोष है। कहीं नर में यह अधिक होती है कहीं समझा जाने लगा। पतन यहा तक हआ कि नारी में । विलासप्रियता बढ़ने के यों तो अनेक कारण है पर एक मुख्य कारण मार्थिक है। जहा रिपेणकृत जैन पद्मपुराण की एक नारी सम्पत्ति की मालकिन नहीं है वहा उसमें गुम याद आती है कि नघप नाम का राजा राज्य उत्तरदायित्व कम हो जाय यह स्वाभाविक है। का भार अपनी पानी मिहिका हाथ में जिस प्रकार दूसरे के यहा भोज में गये बादमी सापका उत्तर दिशा में दिग्विजय के लिये निकला खूब लापर्वाही से बाते हैं, नुकसान की चिन्ता पर पाक्षिण दिशा के गजानो ने राजधानी नही करत, उसी प्रकार उस नारी में एक प्रकार पर श्रामण कर दिया। रानी ने सेना लेकर की लापर्वाही आ जाती है। जो मालकिन नहीं है योग्ता में उनका सामना किया, न्या . वह सिर्फ अधिक से अधिक विलास को पात PRATEET उसने मणि को नरफ विजय सोचनी है, अकर्मण्य और श्रामसी बनती है। यात्रा भी की श्री सत्र राजाओं को जीनकर नारिया में जो श्राभूपणप्रियता पाई जाती पानी में श्रागई। इसमें मालूम होता है कि उसका कारण भंगार या बडापन दिखाने की भौमता सतीत्व समझा जाने लगा।
SR No.010834
Book TitleSatyamrut Drhsuti Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatya Samaj Sansthapak
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1951
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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