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दृष्टिकाड
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अगर सा मायाचार हो तो वह क्षमा करने पड़ता है वह प्रतियोबक मायाचार (बोज कूटो) योग्य है । यह शिष्टाचारी मायाचर नर नारी में है। यह बड़े बड़े महापुरुषों में भी पाया जाता बराबर ही पाया जाता है इससे नारी को दोप है धल्कि उनमें अधिक पाया जाता है, यह तो नहीं दिया जा सकता।
महत्ता का द्योतक है । हो, इसका प्रयोग निस्वा. ग-हस्यिक मायाचार (हहि कटो) ता और योग्यता के साथ हो। जन्तव्य ही नहीं है बल्कि एक गुण है। मानलो छ-हँसी विनोद में सब की प्रसन्नता के पति पत्नी में कुछ झगडा हो रहा है इतने में लिये जो मायाचार किया जाता है वह विनोदी बाहर से किसी ने द्वार ग्वटरबटाया। पति पत्नी ने मायाचार (हशं कूटो) है। यह भी क्षन्तव्य है। इस विचार से कि बाहर के यादमी को दोनों के नर नारी में यह समान ही पाया जाता है। झगडे का पता कदापि न लगने देना चाहिये न ज-प्रवचक मायाचार ( चीट कूटो) वह है दोनों के बीच से तीसरे को वसंदाजी का मौका जहाँ अपने स्वार्थ के लिये दूसरों को धोखा दिया देना चाहिये, अपना झगड़ा छिपा लिया और जाता है विश्वासघात किया जाता है। यही मायाइस प्रकार प्रसन्न मुख से दरवाजा खोला माना चार वास्तविक मायाचार है, पाप है, घृणित है। दोनों में कोई विनोद हो रहा था । यह राहस्थिक यह सनथा त्याज्य है। भायाचार गुण है जोकि नर और नारी दानों में ऊपर के सात तरह के मायाचारों में तो पाया जाना है, और पाया जाना चाहिये। सिर्फ इतना ही विचार करना चाहिये कि उनमे
घ-कभी कभी शिष्टाचार और वस्तुस्थिति अति न हो जाय, उनका प्रयोग वेमौके न हो का पता लगाने के लिये मायाचार करना पड़ता जाय, या इस ढंग से न हो जाय कि दूसरो की है, जैसे किसी के घर जाने पर घरवाले ने कहा परेशानी वास्तव में बढ़जाय और उनको नुकसान पाइयं भोजन कीजिये। अब यह पता लगाने के उठाना पड़े। कुछ समझदारी के साथ उनका लिये मना कर दिया कि इसने सिर्फ शिष्टाचार- प्रयोग होना चाहिये बस, इतना ठीक है। सो वश भोजन के लिये कहा है या वास्तव में इसके इनके प्रयोग में नर नारी में विशेष अन्तर यहा भोजन कराने की पूरी तैयारी है। अगर नहीं है। तैयारी होती है तो वह दूसरे धार इस ढंग से आठवा प्रवचक मायाचार किस में अधिक अनुरोध करता है कि वस्तु-स्थिति समझ में आ कहा नहीं जासकता ? परन्तु यह ध्यान में जाती है, नहीं तो चुप रह जाता है। यह माया- रखना चाहिये कि यह मायांचार निर्णलता का चार तथ्य-शोधक (लसिको हिर) है क्योंकि परिणाम है ! मनुष्य जहाँ क्रोध की निष्फलता इससे अनुरोध करनेवाले की वस्तुस्थिति का समभालेता है वहा मायाचार का प्रयोग करता पता लगता है। यह अगर नारी में अधिक हो है। पीड़कों मे क्रोध की अधिकता होती है पीड़ितों
तब नो उसकी विवेकशीलता ही अधिक सिद्ध मे मायाचार की। अगर कहीं नारी में थोड़ा - होगी।
बहुत मायाचार अधिक हो तो उसका कारण यह -अन्याय और अत्याचार से बचने के है कि नारी सहसादियों से पीड़ित है। जब वह लियो मायाचार किया जाता है वह आत्म- क्रोध प्रगट नहीं कर सकती तब नरम पड़कर रक्षक (एम रच) है। यह नर नारी में बगबर मायाचार से काम लेती है। यह परिस्थिति का है और चन्तन्य है।
प्रभाव है, स्वभाव नहीं। जहा उसे अधिकार है, च-किसी आदमी को समझाने के लिये या वल है, लापर्वाही है वहा वह मायाचार नहीं उसकी भलाई करने के लिये जो मायाचार करना करती क्रोध करती है और तब दुनिया से उग्र