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अधिकार
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रहता है इसलिये दाढ़ी के बाल बनवाने का गुणाभाव हुआ काता है इसलिये नारी नर से रिवाज चल पड़ा। धीरे धीरे यही बात मूछों के हीन हैविपय मे हई, मछ मुड़ाने का रिवाज भी बन १ निर्बलता, २ मूढ़ता, ३ भायाचार, गया। बहुत से शास्त्रों के अनुसार तो यह भी ४ भारता, ५ विलासिता, ६ अनुदारता, ७ कलकहा जाने लगा कि देव तथा दिव्य पुरुषों के हकारिता, ८ परापेक्षता, दीनता, १० रूढ़िमूछे नहीं होती, दाढ़ी पर वाल नहीं होते । पुरुप प्रियता, ११ नुद्रकर्मता, १२ अधैर्य आदि दोपों
ने नारी वेष का नो यह अनुकरण किया वह के कारण नारी नर से हीन ही कही जायगी। । स्वच्छता आदि की दृष्टि से उचित ही कहा जा एक बात यह भी है कि नारी उपभोग्य है और सकता है।
पुरुप उपभोक्ता है इसलिय भी नारी होन है। . वेप के विषय में ये खास खास सूचनाएं .. उत्तर-नारी मे स्वभाव से कौन से दोप है इनका पालन होना चाहिये । वाकी लिंगजीवन है इसका विचार करने के लिये सिर्फ एक घर पर के प्रकरण में नारीत्व और पुरुषत्वका वेपसे कुछ था किसी समय के किसी एक समाज पर नजर सम्बन्ध नही है. न शरीर-रचनासे मतलब है। डालने से ही काम न चलेगा। इसके लिये उसके द्वारा तो मानव-जीवन लिये उपयोगी विशाल विश्व और असीम कालपर नजर डालना
पड़ेगी। इस दृष्टि से उपयुक्त दोषो का विचार गुणों को दो भागों में विभक्त करके बतलाया है
और हरएक मनुष्य को कम से कम किसी एक यह किया जाता है। भाग को अपनाने की प्रेरणा है। एक भी भाग १-निर्बलता ( नेटु'गिरो)- इसके विषय में को न अपनाने पर उसमें नपुसकत्व आजायगा। पहिले बहुत कुछ लिखा जा चुका है। निर्मलता
प्रश्न-लैंगिक जीवन के श्रापने तीन भेद अनेक तरह की है। उनमे से मानसिक या वाचकिये हैं पर स्पष्टता के लिये यह जरूरी था कि निक निकाला
निक निर्मलता नारी में नहीं है, कायिक निर्मलता उसके चार भेद किये जाते । नप सक जीवन, स्त्री. है, परन्तु वह भी बहुत थोडी मात्रामें, उसका कारण जीवन, पुरुष-जीवन और उभय लिंगी जीवन ।
सन्तानोत्पादन है । सन्तानोत्पादन मानव-जातिके स्त्री-जीवन और पुरुष-जीवन को मिलाकर एक
जीवनके लिये अनिवार्य है और उसका श्रेय [ सौ लिंगी जीवन के नाम से दो भेदों का एक भेद
मे निन्यानवे भाग] नारीको है। इस उपकार के क्यों बनाया
कारण आनेवाली थोडी बहुत शारीरिक निर्बलता ।
हीनता का कारण नहीं कही जासकती । जैसे उत्तर-जीवनदृष्टि अध्याय में जीवन का
ब्राह्मण और क्षत्रिय है। ब्राह्मण अपनी बौद्धिक श्रेणी-विभाग बताया गया है । नपुंसक जीवन से
शक्ति द्वारा समाज की सेवा करता है और क्षत्रिय एकलिंगी जीवन अच्छा है, एकलिंगी जीवन से शारीरिक शक्ति द्वारा। इसलिये क्षत्रिय बलवान उमयलिंगी जीवन अच्छा है इस प्रकार श्रेणी होता है पर इसीलिये क्या ब्राह्मण से क्षत्रिय उच्च विभाग बनजाता है परन्तु स्त्री-जीवनसे पुरुपजीवन होगा? ब्राह्मण की शारीरिक शक्ति शुद्ध से भी अच्छा इस प्रकार का श्रेणी-विभाग नहीं बनता, कम होगी, वैश्य से भी कम होगी परन्त इसी. इसलिये ये अलग अलग भेद नही बनाये गये । लिये वह सब वर्णो से नीचा न हो सकेगा। यह
प्रश्न-नारी और नर मनुष्यत्व की दृष्टि से निर्बलता बौद्धिक सेवा के कारण है। जो निर्व समान हैं। ऐसी भी नारियाँ हो सकती है जो लता समाज की भलाई करने का फल हो वह बहुत से नरों से उच्च श्रेणी की हो पर टोटल हीनता का कारण नहीं कही जासकती। नारी मिलाया जाय तो यह कहना ही पड़ेगा कि नारी की निर्बलता मानव-जाति के रक्षणरूप महान से से नर श्रेष्ठ है। नारी में निम्नलिखित दोष या महान कार्य का फल है इसलिये वह हीनता का