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________________ - सत्यामृत रक्षा को। बल्कि इससे व्यवहार में एक भ्रम पैदा क-युद्ध क्षेत्र आदि में अगर कुछ काम होता है। करना पड़े और परिस्थिति ऐसी हो कि नारी को ___ नर नारी की पोशाक में कितना अन्तर होते र पुरुष-वेप लेना ही कार्य के लिये उपयोगी हो तो देशकाल के अनुसार उनमे परिवर्तन होकि नहीं एसा किया जासकता है, हो, हो तो कितना होनारी पुरुष-वेप की तरफ ख-अन्याय या अत्याचार से बचने के लिये कितनी मुके, पुरुष नारी वेष की तरफ कितना वेप परिवर्तन की आवश्यकता हो तो वह शम्य है। मुक्त श्रादि बातों पर विस्तार से विचार किया ग-रंगमंच आदि पर अभिनय करने के जाय तो एक खासी पुस्तक बन सकती है। यहां लिये अगर नर को नारी का या नारी को नर का उतनी जगह नहीं है इसलिये यहां इस विषय में क्षेप लेना पड़े तो यह भी सम्य है। कुछ इशारा ही कर दिया जाता है। ध-जनसेवा, न्यायरक्षा आदि के लिये गुप्त१-वारी और नर की पोशाक में कन घर का काम करना पड़े और वेप-परिवर्तन कुछ अन्तर होना उचित है। नारी ऐसा वेप ले करना हो तो वह भी क्षम्य है। कि देखने से पता ही न लगे कि यह नारी है इस प्रकार के अपवादों को छोड़कर नर और नर ऐसा वेष ले कि देखने से पता हीन नारी की पोपाक में कुछ न कुछ अन्तर रहना लगे कि यह नर है, यह अनिचित है । साधारणत: चाहिय। वप अपने लिंग के अनुसार ही होना उचित है। २-वेप जलवा और कार्यक्षत्र के अनुसार इसका एक कारण यह है कि इससे नर नारी में होना उचित है। गरम देशों में जो वेप ठीक हो जो परस्पर लैंगिक सन्मान और सुविधा प्रदान सकता है वही ठंडे देशों में होना चाहिये यह नहीं आवश्यक है उसमें सुविधा होती है। अनावश्यक कहा जासकता या एक ऋतु में जो प चित और हानिकर लैंगिक सम्बन्ध से भी बचाध कहा जासकता है वही दूसरी में भी उचित है होता है। दूसरी बात यह है कि नर और नारी यह नहीं कहा जासकता । मानलो किसी देश में को मानसिक सन्तोष अधिक होता है। नारियों साधारणत. साड़ी पहिलती है पर शीत ___नारी अधूग मनुष्य है और नर भी अधम ऋतु में ठंड से बचने के लिये उनने अनी कोट मनुष्य है दोनों के मिलने से पूरा मनुष्य बनता पहिन लिया या बरसात में पानी से बचने के है इस प्रकार के एक दूसरे के परक है। शारीरिक लिये बरसाती कोट पहिन लिया वो कोट, साधा. दृष्टि से उन दोनों में जो विषमता है वह इस पर. रणत: पुरुष की पोपाक होनेपर भी, उक्त अवसरों कवा के लिये उपयोगी है। वेष की विषमता पर नारी के लिये भी वह अनुचित न कहा शारीरिक विषमताका श्रृंगार है या इसे बनानेवाली जायगा। है और शारीरिक विपमता पूरकता का कारण है ३-नर और नारी के वेष में कुछ वैषम्य ३-नर और नारा इसलिये वेष की विषमता भी पूरकता का कारण रहने पर भी यह आवश्यक नहीं है कि एक दूसरे है। एक नारी का हृदय नारी-वेषी पुरुष से इतना के क्षेप की अच्छाइयाँ ग्रहण न की जायें। सौन्दर्य सन्तुष्ट नहीं होता जितना पुरुष-वेषी पुरुष से। और स्वच्छता की दृष्टि से एक दूसरे के वेप की इसी प्रकार एक पुरुष का हृदय पुरुष वेपी नारी बाव ग्रहण करने में कोई बुराई नहीं है। उदाहरसे इवना, सन्तुष्ट नहीं होता जितमा नारी-वेपी णार्थ एक दिन ऐसा था जब हरएक पुरुष अपनी नारी से इसलिये अमुक अंश में वेप की विष- बादी पर के बाल सुरक्षित रखता था, अब भी मता जरूरी है। हाँ, इस नियम के कुछ अपवाद बहुत से लोग रखते हैं पर उन वालों से सफाई में कुछ असुविधा होती है, सौन्दर्य भी कुछ कम
SR No.010834
Book TitleSatyamrut Drhsuti Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatya Samaj Sansthapak
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1951
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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