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सत्यामृत
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वह चोटो को कम पर्वाह करता है। बदला लेने किन थी। नारी के आकर्षण से पुरुष यह कार्य की भावना भी उसमें कम होती है। वह हुकार करता था पर सन्तान के विषय मे पुरुष को कोई तभी करता है जब चोट असह्य हो जाती है या आकर्षण न था, न घर को चिन्ता थी, इसलिये उसके विधायक कार्य मे बाधा पड़ते लगती है। पुरुष में वह स्थिरता नहीं थी जिस की आवश्यनारी शरीर से कोमल होने पर भी जो उसमे कता थी। मन ऊबने पर वह जहाँ चाहे चल देता कष्टसहिष्णुता अधिक है उसका पारण मानव. था। पर नारी का तो घर था, बाल बच्चे थे और निर्माण के कार्य में प्राप्त हई कष्टसहिष्णता का था उसके आगे मानव-निमोणका महान कार्य. अभ्यास है। नर ने इसका काफी दुरुपयोग किया वह इतनी अस्थिर नहीं हो सकती थी। वह स्थिर है फिर भी नारी विद्रोह नहीं कर सकी और सह थी और स्थिर सहयोग ही चाहती थी । इसलिये 'योग के लिये पुरुष को ही स्त्रीचने की कोशिश पुरुष को सदा लुभाये रखने के लिये नारी की करती रही इसका कारण उसकी सन्तानवत्सलता
चेष्टा होने लगी, इसी कारण नारी में कलामयता था मानव निर्माण का कार्य है।
शृङ्गारप्रियता आदि गुणों का विकास हुआ । ___ मानव निर्माण के कार्य ने मारी में एक
इससे पुरुष का आकर्षण तो बढा ही, साथ ही तरह की स्थिरता या संरक्षणशीलता पैदा की।
उसका मूल्य भी बढ़ा उसमें आत्मीयता की मानव निर्माण या और भी विधायक कार्य प्रक्षुब्ध।
भावना अधिक पाई और वह नारी के बराबर वातावरण या अस्थिर जीवन में नहीं हो सकते,
तो नहीं, फिर भी बहुत कुछ स्थिर हो गया । उसके लिये बहुत शान्त और स्थिर जीवन चाहिये। इस प्रकार नारी के सन्तानवात्सल्य नामक इसलिये नारीन वर बसाया। चिड़ियाँ जैसे अडों
एक गुणने उसमें सेवा कोमलता सहिष्णुता के लिये घोंसला बनाती हैं और इस काम मे माग
स्थिरता अङ्गारप्रियता या कलामयता आदि अनक चिड़िया नर चिडिया का सहयोग प्राप्त करती है,
गुण पैदा किये । संगति और संस्कारों ने ये उसी प्रकार नारीने घर बसाया और नर का सह
गुण नारी मात्र मे भर दिये । सन्तान न होने योग प्राप्त किया।
१. पर भी बाल्यावस्था से ही ये गुण नारी में स्थान
. जमाने लगे । नारी के सहयोग से ये गुण पुरुप लव घर चना तब जीवन में स्थिरता आई में भी आये और ज्या ज्या मनुष्य का विकास उपार्जन के साथ सरह हुआ, भविष्य को चिन्ता होता गया त्यो त्यो इनका क्षेत्र विस्तृत होता गया हुई, इससे उबलता पर अंकुश पड़ा और यहा तक कि सन्तानवात्सल्य फैलते फैलते विश्वइस तरह समाज का निर्माण हुआ।
वन्धुत्व बन गया। 'नारी के सामने मानव-निर्माण घर बसाना, जगत में आज जो अहिंसा, संयम, प्रेम, समाज-रचना आदि विशाल कार्य आगये। अगर त्याग, सेवा, सहिष्णुता, स्थिरता, कौटुम्बिकता, मनुष्य पशु होता तब तो यह कार्य इतना विशाल सौदर्य, शोभा, कलामयता अादि गुणांका विकन होता, अकेली नारी ही इस कार्य को पूरा कर सित रूप दिखाई देता है उसका श्रेय नारी या डालती, पर मनुष्य पशुओं से कुछ अधिक या नारीत्व को है क्योंकि इनका बीजारोपण उसीने इसलिये उसका निर्माण कार्य भी विशाल था। किया है इसलिये नारी भगवती ई नारीत्व वन्दअकेली नारी इस विशाल कार्य को अच्छी नीय है। नारीत्व का अर्थ है म संवा सहि तरह न कर पाती इसलिये उसने पुरुष का सह- गुता कला आदि गुणों का समुदाय और योग चाहा । नारी घर स्त्री कारखाने में बैठकर मानव-निर्माण का महान कार्य ।। निमाण कार्य करने लगी और पुरुष सामान नारी की विशेष शरीर रचना के कारण जुटाना और संरक्षण कार्य करने लगा। इस जहाँ उस में उपयुक्त गुण आय वहाँ थोडी अवस्था में पुरुष सिर्फ सहयोगी श्रा, नारी माल- मात्रा में एक दोप भी आया । वह है आंशिक