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________________ सानाद 1 २३२ - - - -- समझा जाता है पर दुर्यश पहिले दर्जे का हो तो १५-जीवन दुर्यश (जिवं पिमो)-सा जीवन सत्र से खराब समझा जाना है। यहा जो पाप किया जाय जिससे जीवनभर या कापी जीवन की श्रेणियों बनाई गई हैं वे सब से समय तक वदनामी रहे। पर वह न तो बहुन अच्छे जीवन से लेकर सब से पराव जीवन तक फैले न बहुत उन्च हो। गई हैं। इसलिये पलक यश के बाद अयश २-प्रजीवन दुर्यश (शेलिवरूपिमो)-जीवन जीवन और फिर पलक दुर्यश जीवन पाता है। यश जत्र स्थायी के साथ विस्तीर्ण भी होताय परम दुर्यश जीवन वो सबसे गया बीता जीवन तो वह प्रजीवन दुर्यश होजाता है। है । इसप्रकार ग्यारह से उन्नीस तक दुवंश १५-भविष्य दुर्यश (लसलर अपिमा)-यान जीवन के भेद हैं। जो वरनामी छिपीहुई है या तुच्छ है पर कुछ ११-पलकदुर्गश रिक रूपिमो किसी समय बाद या जीवन के बाद जो स्थायी में छोटीसी गलती से थोड़े से लोगो के बीच में आयगी. यथाशक्य फैल भी जायगी वह भविष्य होने वाली बदनामी, जो कुछ समय में भलादी- दुर्गश है। जायगी पलकटुर्यश कहलाती है। अधिकाश १-महादुर्भश (सोमपिमो)-जो बदनामी व्यक्ति कभी न कभी ऐसी बदनामी पाजाले हैं। किसी कारण विस्तार न पासको हो पर जिनने . १२-छाया दुगंश [छुवं सपियो ] पलक क्षेत्रमें फैनी हो काफी उत्कट हो और स्थायी हो। सुमेश के समान कुछ बड़ीसी बदनामी, जो कुछ विश्वासघात कृतघ्नता श्रादि से ऐसी बदनामी अधिक लोगो में फैलती है पर कुछ दिनों में मिला करता है मुलाने लायक है। १६ पाम दुर्गश ( शो रूपिमो) जो वद. १३-धूम दुर्गश [युगं रुपमो बदनामी की नामी काफी तोत्र हो खून फैली हो और यहुन वान ऊंचे दो की हो. परवडत नपारी समय तक के लिये स्थाया हो जैसे गवणादि की हो और न स्थायी होपाई हो । धुएं की तरह वदनामा वह परम दुयश । घोड़ी जगह में फैलकर उड़जाने वाली हो, पर यश की दृष्टिसे मनुष्य को अपना जीवन आग लगने के समान उत्स्टता का चिन्ह टटोलना चाहिय। दुवंश से बचकर यथाशक्य अवश्य हो। यश को अंची श्रोणियों में रहना चाहिये। ___१४ प्रधूम दुश [शेधुर्ग रूपिमो धद. ९-लिंगजीवन निगो नियो] नामो का कार्य काफी बड़ा हो, फेल भी गया हो, पर टिकाऊ न हो। तीन भेद ___ बहुत फैलने या टिकने का विचार सापेक्ष नर नारी ये मानवजीवन के दो अंग हैं। दृष्टि से करना चाहिये। जिस कार्गम बहुत प्रसिद्ध अकेली नारी आधा मनुष्य है अकेला नर आधा व्यक्ति को जितनी बदनामी होसकती है उस मनुष्य है। दोनों के मिलने से पूर्ण मनुष्य बनना कार्य से प्रसिद्ध व्यक्ति को उतनी बदनामी है। इस प्रकार दम्पति को हम पूर्ण मनुष्य कह नहीं होसकती। पर इस कारण से अप्रसिद्ध सकते हैं। व्यक्ति कवी श्रेणी का नहीं होजाता । उसको हिन्दुओ से जो वह प्रसिद्धि है कि शिवजी परिस्थिति के अनुसार ही उसकी बदनामी की का आधा शरीर पुस्परूप है और भावा नारी, व्यापकता और स्थायिता का विचार किया इस रूपक का अर्थ यही है कि पूर्ण मनुप्य में नर जायगा और उसी के अनुसार उसकी श्रेणी और नारी दोनों को विशेषताएँ हुआ करती है। निश्चित होगी। पर यह ध्यान रखना चाहिये कि वे विशेषताएँ
SR No.010834
Book TitleSatyamrut Drhsuti Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatya Samaj Sansthapak
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1951
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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