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________________ ' OF२३.] सत्यामृत - - श्रद्धा या पूज्यता का भाव नही रहता सिर्फ म.राम, म कृष्णम बुद्ध, म. ईसा, म मुहम्मद, अातंक था लोगों की जानकारी रहती है। कोई स. माक्स आदि इसी श्रेणी के यशस्वी हैं। म. कोई तो बदनाम ही होते हैं अपयश पाते हैं। महावीर विस्तीर्णता में कुछ कम होने पर भी अपयश वास्तव में मृत्यु है नरक है। हो ! वे इसी श्रेणी में लिये जासकते हैं। म सुक्रगत अपयश जो आगे चलकर यश में बदल जाने आदि भी परम यशस्वी हैं । सम्राट अशोक की वाले हैं, या विवेकियों की दृष्टि में अपयश नहीं है गिनती भी परमयशस्वियों में की जासकती है । जनना की मूर्खता के कारण पैदा हुए है वास्तव म कम्प्यूसियस भी परमयशस्वी हैं। में अपयश नही है। इन सब बातों का विचार २-महायश-को विस्तार में कम है पर करते हुए यशो जीवन के मूलमें तीन और फिर बाकी बातों में परमयशस्वी के समान है। वे उन्नीस भेद होते हैं । १-सुयशजीवन ( सुम्पम महायशस्वी है परमयशस्वी और महायशस्वी जियो) २-अयश जीवन [ नोपिम जिवो] की योग्यता में कोई निश्चित अन्तर नहीं होता। ३-दुर्यशजीवन [ रूपिम जियो] दोनो कौन करीब एक सरीख हैं। सिर्फ प्रचार अच्छे यशवाला जीवन सुयश जीवन है। के कारण यह अन्वर पैदा होता है। जिस जीवन मे न सुयश है न अपयश वह ३-भविष्ययश-जिनने जीवन में उचित अयश जीवन है। यश नहीं पागा किन्तु जिनके उपकार और जिस जीवन मे दुर्गश है बदनामी है वह योग्यता इतनी महान है कि मरने के बाद उनका दुर्गशजीवन है। यश फैलेगा। आज जिनको हम परमयशस्वी या प्रयश जीवन तीन श्रेणियों विजीफोमहायशस्वी कहते हैं उनमें से अधिकाश अपने और नव उपनगियो (फूर्तिजीपो) मे घटा जीवन में भविष्ययशस्वी ही थे। इसलिये जो हुधा है। सरुवा जगत्सेवक है वह परमयशस्वी या महायशस्वी बनने की चिन्ता नहीं करता, वह १- उत्तम यश (सतपिमो) . भविष्ययशस्वी होने में ही सन्तुष्ट रहता है । हा! १-परमयश (शोपिमो) स्थायी उच्च विस्तीर्ण कुछ ऐसे विवेकी होते हैं जो भविष्ययशस्वी की २-महायश (सोपिभो) स्थायी उच्च पामयशस्विता या महानयशस्विता जीवन में ही ३-भविष्ययश ( लसलेर पिमो) पहिचान लेते हैं वे उस भविष्ययशस्वी को परम२-मध्यम ( साधारण ) यश (पोम पि) यशस्वी ही कहते हैं, यह उचित और आव. ४-प्रजीवनयश (शे जवं पिमो) स्थायी व्यापक श्यक है। Y-जीवनश (जिपिमो) स्थायी ६-प्रदीपरश (शेदिम्प पिमो ) उघ व्यापक ४-मुजीवनयश-जो यश काफी स्थायी है ७-दीपयश (दिगं पिमो ) उच्च व्यापक भी है परन्तु जिसमें उन्धता नहीं है या बहुत कम है। तारीफ तो होती है आश्चर्य भी ३- जघन्य यश (रिक पिमो, होता है पर विचार करने पर काफी मात्रा में ८-छायायश (खुध पिभो । व्यापक भक्ति आदर श्रद्धा अनुराग आदि पैदा नहीं ६. पाकयश (रिंक पिमो) अस्थायी तुच्छ व्यापक होता। जैसे श्रागरे को ताजमहल अपने निर्माता परमयश-लो यश पीडियो या शता. का नाम शादियों के लिये अमर किये हुए है, दियो तक रहा है रहनेवाला है, युग के याता- देश देशान्तरो में वह यश फैला है इसलिये यात के अनुसार हजारों कोसो में फैला हुआ है, व्यापक भी है पर तासमहल बनवाने के बारेमे यशस्वी व्यक्ति के विषय में लोगो को श्रादर का. वह भक्ति आदर आदि पैदा नहीं होते जो एक भाव है ऐसे यश को परम यश फहना चाहिये। जनसेवक के बारे में पैदा होते हैं । विचारक यही
SR No.010834
Book TitleSatyamrut Drhsuti Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatya Samaj Sansthapak
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1951
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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