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________________ हष्टिकांड [२२] - - कर करुणावश उधार दे देते हैं उनका ऋण न ११-चोर जीविका चोरी करके जीविका चुकाने वाला और भी बड़ा उधार ठग है। करना चोरलीविका है। दूसरा धन्धा करते हए उसकी कृतधनता नीचता हरामखोरी और भी भी कभी कभी चोरी करनेवाला चोर ही कहा ज्यादा है। जायगा । इसकी बेईमानी और पतितता स्पष्ट है । जो आदमी उधार लेने से लेकर अन्ततक .१२-घातजीविका-डकैती आदि करके ऋण चुकाने का माव रखता है और समय समय जबर्दस्ती दूसरोंका धन छीननेवाला घातजीवी है। पर प्रगट करता है, अधिकसे अधिक मितव्ययी दूसरो को परेशान करके सताकर रिश्वत लेने बनकर थोड़ा बहुत चुकाता रहता है. समय पर न वाला भी घातजीवी है डकैत के समान है। यह चुका सकनेका पश्चाताप प्रगट करता रहता है, वह बेईमान पतित और क्रूर है। उधार ठग नहीं है। पर किसीकी मनोवृत्ति को मनुष्य को उत्तमोत्तम या उन्तम जीविका पूरी तरह कोई परख नहीं सकता, इसलिये ऐसे करना चाहिये । साधारण जीविको विवशता में ही व्यक्ति को भी दुनिया उधार ठग समझे तो उसे क्षन्तव्य है, अधम जीविफा न करना चाहिये, सहन करना चाहिये। और अधमाधम जीविका तो मरने से भी बुरी है । ___जो लोग उधार लेकर उसे अस्वीकार कर यह एक भरम है कि पेट भरने के लिये देते हैं वे उधार ठग तो है ही, साथ ही बड़े अधम या आधमाधम जीविका करना ही पड़ती चोर भी हैं। है। अगर कोई मनुष्य इमान पर कायम रहे तो जो लोग उधार लेकर सिर्फ अस्वीकार ही वह जीविका के क्षेत्रमें असफल नहीं होगा. अगर नहीं करते किन्तु, ऋणमता पर कोई दोपागेपण थोडी बहुत कमी रहेगी तो सुखशाति गौरव की मी करते है उसकी झूठी बदनामी भी करते हैं वे प्राप्ति से वह कमी न अम्बरेगी. बल्कि इस दृष्टि ठग होने के साथ डकैत भी हैं। से टोटल मिलाने पर लाभ ही रहेगा । जीविका की दृष्टि से मनुष्य को अपना जीवन उत्तम जिनने ऋण चुका दिया है व्याज भी चुका बनाना चाहिये । इसमें सिर्फ परमार्थ ही नही है दिया है फिर भी दर व्याज आदि के कारण, या साहुकारी हथकंडो के कारण ऋणग्रस्त बने हुए स्वार्थ भी है। है ऐसे लोगों को किसी तरह सरकार या समाज ८-यशोजीवन [ फिमोजियो] के द्वारा ऋणमुक कर दिया जाय तो वे उधार जीवन की सफलता की बहुत बडी कसौटी लग नहीं है। ठग जीवी लोग जीवनभर या सदा ठगजी. यश है। धन वैभव पर अधिकार और पा भी यश की बावरी नहीं कर सकते क्योकि ये मत्र विका ही करते हैं यह बात नहीं है, वे दूसरी जीविका भी करते है पर जिसके जीवन में प्रकाश हान है। जविन का प्रकाश यश है. और जीवन की उम्म भी यही है। जिसका नाम जिस जीविका को स्थान है यह ठगजीवी है । ठगी विसा से किसी धन मार लिया और फिर से रुपमे जितने महत्व के साथ जब तक जीना पूंजी बनाकर कोइ अच्छा धन्या भी करने लगा तब तक वह अगर हे ऐसा समझा जाना और यह ठीक है। सौभी उस अच्छे धन्धे का मूनाधार या मुख्याधार ठगजीविका होने से वह ठगजीवी कहा पर यश में भी अन्तर बहुन है, उसके जायगा । जब तक ठगजीविका से कमाया हुआ असंख्य था अनन्त भेट है। किसी किसी काम धन वह चापिस न करदे और मनसे वचन से सैकड़ी वर्षा तक वाफी महत्व के साथ देश और धनसे कुछ प्रायश्चित्त भी न करने तब तक देशान्तरों तक में फैला रहता है किसी का उगजीवी है। कुछ समय तक या जीवनभर रहना है, उसमें
SR No.010834
Book TitleSatyamrut Drhsuti Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatya Samaj Sansthapak
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1951
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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