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________________ हाएका 1 २२७ । - - - - - - - अधिक जनसेवा नहीं करता तो वह साधु कहला- ५ उत्तराधिकारित्व जीविका- मातापिता कर भी मिक्षाजीवी मोघजीवी आदि फहला आदि से उत्तराधिकारित्व में मिली हुई सम्पत्ति सकता है ठगजीवी आदि भी कहला सकता है। से गुजर करना उत्तराधिकारित्व जीविका है। और साधुदीक्षा न लेने वाला मनुष्य भी अगर ६ मोघजीविका-जीविका के लिये कुछ ऐसे जगत को अपनी महान सेवाएं देरहा है और काम करना जिससे समाज का हित नहीं है, कुतूउससे काफी कम लेरहा है तो वह साधजीवी इत्त आदि के वश होकर समाज से कुछ मिल कहलासकता है। असली वात उसके द्वारा होने जाता है तो यह मोघजीविका है। वाला ज्ञाम है जो दुनिया को मिलता है। इसके उदाहरण में निश्चित नाम लगा कुछ तला जीविका-जो अपनी सेवाएं बदल कठिन है । किसी की दृष्टि में कोई कार्य विलकुल होने से मोघजीविका है, किसी की दृष्टि में के अनुसार क्ता ६ वह तुलाजाचा है। जाविका नहीं है। हाथ देखकर भविष्य बताना, अशुभ का यही मुख्य और व्यापक रूप है। दूकानदार, ग्रहों की शान्ति के लिये प्रजा अनसन आदि मजदुर, नौकरी पेशा करनेवाले, श्रादि यदि इमा• करना, शरीर कष्टों का प्रदर्शन करना, आदि नदारी से काम करे तो वे तुला जीविका करने किसी को दृष्टि में व्यर्थ कार्य हैं किसी की दृष्टि वाले कहलायेंगे। में आवश्यक या उपयोगी । इसलिये इसका ३ निवृत्तिजीविका-जिनने जीवन में तीस नियि युग के अनुसार, वैज्ञानिकता की प्रगति चालीस वर्ष काफी सेवा करली और अब वृद्ध और व्यापकता के अनुसार करना चाहिये ।। होकर पेन्शन रहे हैं या उस समय बढापे ७ श्राश्रयजीविका-शारीरिक असमर्थता लिये जो धन सञ्चित कलिया था उससे गुजर आदि के कारण किसी के आश्रित रहना और उसकी सम्पत्ति से गुजर करना आश्रयजीविका कर रहे हैं, या पालपोसकर सन्तान को कमा हैं। अगर उसने थोड़ा बहुत कार्य किया भी, पर बनादिया है इसलिये सन्तान की कमाई से गुजर जितना वह लेता है उसके अनुरूप न किया, या कर रहे हैं, ये सब निवृत्ति जीवी हैं। ऐसा काम किया जिसके बिना कोई खास हानि ४ शोषण जीविका-यूजी, या पद आदि के नहीं थी अर्थात करीव करीव व्यों का त्यो काम द्वारा अपने श्रम या सेवा आदि के मूल्य से चल सकता था तो ऐसा नाममात्र का काम करने अधिक लाभ उठा लेना शोषण जीविका है। बड़े वाला भी आनवजीवो कहलायगा। बड़े कारखानों वाले तो यह शोपण जीविका करते इस प्रकार का जीवन वालकों के लिये ही हैं पर छोटे छोटे लोग भी यह शोपण जीविका उचित है। करते हैं । दूसरे को संकट में देखकर उससे अधित दुर्दैवयोग से कोई अन्धा श्रादि होगया हो से अधिक दाम वसूल कर लेना भी शोषण तो उसे क्षन्तव्य है। जीविका है। यह काम साधारण स्थिति के धनी सामर्थ्य रखते हुए भी आलस्यवश, प्रलोभी करलेते हैं। योग्यता और सेवाभाव न होते भनवश, या गृहस्वामी संकोचवश कुछ कहता हुए भी गुट बनाकर गुट के बलपर राज्यमन्त्री नहीं इसलिये पड़े रहना, आभयो बने रहना श्रादि वनजाना, या चापलूसी आदि के बलपर अपराध है। कोई ऐसा पद प्राप्त फरलेमा तिसकी योग्यता पली बाहर कमाने भले ही न जाती हो अपने में न हो, न उसके अनुकूल सेवा देसकते पर यदि वह गृहिणी के योग्य कर्तव्य करती है हो, तो यह भी शोपण जीविका है। तो उसकी जीविका आभयजीविका नहीं है, किंतु
SR No.010834
Book TitleSatyamrut Drhsuti Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatya Samaj Sansthapak
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1951
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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