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सत्यामृत
चलाता
बढ़ी चढ़ी रहती है और जो कर्मयोगी होते हैं वे ७-जीविका जीवन (काजो जिवो) ही तीर्थकर जिन बुद्ध अवतार पैगम्बर मसीह
आदि बन जाते हैं। पैगम्वरों के विषय में जो यह , मनुष्य अपनी जीविका किस प्रका कहा जाता है इसपर से भी उसके जीवन की उत्तमता या होते हैं उनकी यह ईश्वस्तता और सन्देशवाह
अधमता का पता लगता है। बल्कि यह कहना कता और कुछ नहीं है विशाल रूपमें उच्च श्रेणी
चाहिये कि यह जीवन की एक बड़ी .कसौटी है। की विवेकरितता ही है। विवेक रूपी फरिश्ते से
जीविका के क्षेत्र में मनुष्य की मनुष्यता की
करीब करीव पूरी परीक्षा होती है। इस दृष्टि से उन्हें पैगाम मिलता है।
मानव जीवन उत्तरोत्तर हीन ग्यारह बोगियों निस्वार्थत्ता, बुद्धिमत्ता, विचारशीलता, मनो
(तिजीपो) में विभक्त होता है । इनमें पहिली
उत्तमोत्तम ( सोसत }, २-३ री उत्तम (सत) वैज्ञानिकता और अनुभवों के कारण मनुष्य में
४-५-६-७ वी साधारण ( पौम) पाठवीं अधम सदसद्विवेकबुद्धि जग पड़ती है। इस विवेक बुद्धि ।
(कत ) और -१०-११-१२ वीं अधमाधम से वह भगवान सत्य का सन्देश सुन सकता है (सोकव) है। अर्थात् जनकल्याणकारी कार्यों का उचित निर्णय
१- साधुता जीविका (शन्वं काजो) उत्तमोत्तम कर सकता है। यही ईश्वर प्रेरणा है । और
२- तुला जीविका (सिौ काजो) उत्तम विशाल परिमाण में होने पर यही पैगम्बरपन ३- निवृत्ति नीविका (सिन्नं काजो) , था सन्देशवाहकता है।
४-शोपण जीविका (हप कागे). साधारण
५-उत्तराधिकारित्व जीविका (लेलंरोजंकानो), विवेक प्रेरित मनुष्य ही सब मनुष्यों में । ६- मोघ जीविका (नकं काजो) साधारण उच्च श्रेणी का मनुष्य है। वह गरीब स गरीब ७- आश्रय जीविका (शुई कासो) । भी हो सकता है या अमीर से श्रमीर भो । राजा
-भिक्षा जीविका (मिक्वं काजो) धम भी होसकता है और रंक भी। यशस्वी भी होस
६- पाप जीविका (पापं काडो) अधमाधम कता है और यशहीन मी । गृहस्थ भी होसकता
१०- ठग जीविका (चोट काजो) .. है और सन्यासी भी।
११- चोर जीविका (चुरं काजो) ,
१२- घात जीविका (गेवं काओ.). " रेरितो के पाच भेदो से इस बात का पता
. जिस जीविका में जितनी अधिक सेवा लगता है कि कौन मनुष्य विकास की दृष्टि से .
" और संयम है वह उतनी ही उच्च, और जिस
जीविका में जितनी अधिक सेवा और संयम किस श्रेणी का पाणी है। पहिला व्यर्थ परित है वह उतनी नीच जीविका है। मनुष्य पशुओं से भी गया वीता है यह एक तरह
१ साधु जीविका-समाजोपयोगी अधिक से का कोट ( कोतक ) है। दूसरा दंड रेरित पशु अधिक कार्य करना और निर्वाह के लिये कम से के समान (अत ) है। तीसरा स्वार्थ रेरित अर्थ कम, या सेवा के मूल्यसे कम लेना साधु जीविका मनुष्य (शिकमान ) है। चौथा संस्कार रेरित है। साधुदीक्षा लेलेना साधुजीविका नहीं है, किन्तु वास्तविक मनुष्य (मान) है । और पाँचवा सेवा से कम लेना साधुजीविका है। यह जीविका विवेक रेरित पूर्णमनु य ( हकमान ) है, फरिश्तो कोई भी मनुष्य कर सकता है और साधुजीवी गा देव ( नन्दक है।
, कहलासकता है। साधुदीक्षा लेकर यदि कोई