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________________ [२२४ सत्यामृत - -- - - राष्ट्र का जिगरी दोस्त बना बैठा है और दूसरे दोष कुसंस्कारों पर अवलम्बित है वह सुसंस्कारों क्षण स्वार्थ की परिस्थिति बदलते ही वह उसपर से ही अच्छी तरह जा सकता है। गुरनि लगता है। आज दोस्त बनकर कंधे से जिस आदमी पर सच बोलने के संस्कार कंधा भिडाये हुए है कल शत्रु बनकर छाती पर डाले गये हैं वह आवश्यकता होनेपर भी झूठ संगीन तानने लगता है। स्वार्थ के आधार पर नहीं बोलना । सच झूठ के लाभालाम का विचार जो मैत्री या एकता होगी उसकी यही दशा होगी। किये बिना ही सच बोलता है, परन्तु जिसपर मुठ ___एकता शान्ति आदि के लिये श्रेष्ठ उपाय है बोलने के कुसंस्कार पड़े हैं वह मामूली से मामूली सस्कार। स्वार्थ और दंड इसे सहायता पहुँच! कारणों पर भी झूठ बोलेगा, अनावश्यक झूठ भी सकते हैं परन्तु स्थायिता लानेवाला और स्वार्थ घोलेगा, व्यक्तिगत असंयग के विषय मे जो बात और दंड को सफल बनानेवाला संस्कार ही है। है सामूहिक असंयम के विषयमें भी वही बात है। मानव-हृदयमें द्ववका एक विचित्र भ्रम समाया जिनको हमने पराया समझ लिया है उन हुश्रा है। व्यक्ति और ब्रह्मा के बीचमें उसने ऐसी को जरासी मी बात पर सिर फोड़ देगे पर अनेक कल्पनाएँ कर रखी हैं जो व्यर्थ ही जिनको अपना समझ लिया है उनके भयंकर से उसका नाश कर रही है। मनुष्यने जो नाना गिरोह भयंकर पापों पर भी नजर न डालेंगे। कुसंस्कारों धना रक्खे हैं उनमें कोई मौलिक असाधारण के द्वारा आये हुए सामूहिक असंयम ने हमें गुणों समानता नहीं है। हो सकता है कि मेरे गिरोहका का या सदाचार का अपमान करना सिखा दिया एक आदमी लखपति बनकर मौज उड़ाता रहे है और दोषों तथा दुराचार का सम्मान करने में और मैं सुखी रोटीके लिये तड़पता रहूँ और कदा- निर्लज्ज बना दिया है। इन्हीं कुसस्कार का फल चित दूसरे गिरोह का आदमी मुझे सहायता दे, है कि मनुष्य मनुष्य में हिन्दू मुसलमानों का सहानुभूति रखे। जाति-वर बना हुआ है, छूवाछूत का सूत !सर एक गरीब हिन्दू और एक श्रीमान हिन्दू पर चढ़ा हुआ है, जातयों के नामपर हजारो की अपेक्षा एक गरीब हिन्द और गरीर मसल. जेलखाने बने हुए हैं, जिनमें सब का दम घुट रहा मान में सहानुभूति कहीं अधिक होगी फिर भी है। दंड इन्हें नहीं हटा पाता, स्वार्थ सिद्धि का हिन्दू और मुसलमान सामूहिक रूपमें परस्पर प्रलोभन मा इन से बचने के लिये मनुष्य को द्वेष करेंगे 1 कैसा भ्रम है ? भारतका एक विद्वान समर्थ नहीं बना पाता। संस्कार ही एक ऐसा और इंग्लैंड का एक विद्वान परस्पर अधिक सजा- मार्ग है जिससे इन रोगों को हटाने की श्राशा वीय है, कर्म से दोनों ही ब्राह्मण है पर एक की जासकती है। विद्वान अप्रेज भी दूर से दूर रहनेवाले मुर्ख से वैयक्तिक असंयम को दूर करने के लिय मुख अप्रेज को तो अपना समझेगा और भारत मनुष्य को ईमानदार बनाने के लिये सत्संगति के विद्वान से घृणा करेगा। यह एक सांस्कृतिक और सुसंस्कारों की आवश्यकता है, यह बात भ्रम है जो योग्य संस्कृति के द्वारा मिट सकता निर्विवादसी है इस पर कुछ नई सी बात नहीं है। लोगो के दिल पर जन्म से ही ऐसे संस्कार कहना है पर सामाहेक असंयम को दूर करत डाल दिये जाते हैं कि अमुक गिरोह के लोग के लिये सन धर्म-समभाव और सन-जाति-समतुम्हारे भाई के समान है और श्रमुक गिरोह के भाव के संस्कारों की आवश्यकना है। यह बात शत्रु के समान । आधार विचार की अच्छी और संस्कार से अर्थात् सममा बुझाकर था अपने अनुकूल वावें भी कुसंस्कृति के द्वारा मनुष्य को व्यवहार से दूसरों के हृदय पर अंकित कर देने चुरी और प्रतिफूल मालूम होने लगती हैं। जो से ही हो सकती है। राजनैतिक स्वार्थ के नाम
SR No.010834
Book TitleSatyamrut Drhsuti Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatya Samaj Sansthapak
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1951
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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