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हारिकांड
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साँप के आगे दूध का कटोरा रख कर अपनी रक्षा ऐक्य का आधार संस कृति होना चाहिये । दंड करने के समान है। दूध के रलोभन में भूला या स्वार्थ के आधार पर खड़ा हुआ ऐक्य पूर्ण हुआ सर्प फाटेगा नहीं परन्तु वह छेड़खानी नहीं या स्थायी नहीं हो सकता । सह सकता और अगर किसी दिन उसे दूध न दंड से शान्ति होना कठिन है बल्कि ऐसे मिलेगा तब वह उच्छृखल भी हो सकता है। देशव्यापी जातीय मामनों में तो असंभव ही है।
अगर सर्प के विषदंत उखाड लिये जाण क्योंकि दंड-नीति का पालन कराना जिनके हाथ और वह पालत भी बना लिया जाय तब फिर में है वे ही तो मगड़नेवाले हैं। वादी और प्रतिडर नहीं रह जाता । संस्कार के द्वारा मानव
वादी न्यायाधीश का काम न कर सकेंगे । ऐसी हृदय की पशुता की यही दशा होती है । इस
हालतमें कोई तीसरी शक्ति की जरूरत होगी । लिये यही सर्वोत्तम मार्ग है।
और वह तीसरी शकि दोनों का शिकार करने छोटीसे छोटी बातसे लेकर बड़ी से बड़ी बात
लग जायगी । इस प्रकार उस तीसरी शक्ति के
साथ दोनों का एक नया ही संघर्ष चालू हो जायगा। तक इन तीनों की उपयोगिता की कसौटी हो सकती है। आप ट्रेन में जाते हैं, डब्बे में जगह
बात यह है कि दंड नीति की ताकत इतनी जगह लिखा हुआ है कि थूको मत' थूकवुनहीं,
नहीं हैं कि वह प्रेम या एकता करा सके । अगर
उसे ठीक तरह से काम करने का अवसर मिले थुक्कू नका ( Do not Sput) इस प्पकार विविध
तो इतना तो हो सकता है कि वह अत्याचार भाषाओं में लिखा रहने पर भी यात्री डबे में
अन्याय का बदला दिलाने में सफल हो जाय। थूकते हैं। दंड का भय उन्हें नहीं है । दंड देन्य
इससे अन्याय अत्याचारों पर अंकुश भी पढ़ कुछ कठिन मी है 1 हाँ वे यह सोचें कि हम दूसगे सकता है पर उन्हें रोक नहीं सकता और प्रेम को तकलीफ देते हैं, दूसरे हमें तकलीफ देंगे, करने के लिये विवश कर सकना तो उसकी ताकत दूमरों का थूकना हमें बुरा मालूम होता है, हमारा के हर तरह बाहर है। दूसरों को होगा, इस प्रकार स्वार्थ की दृष्टि से वे साथ ही जहा संस्कृति में एकता नहीं है विचार करें तब ठीक हो सकता है। पर हरएक में बहा कानून को न्याय के अनुसार काम करने का इतना गाम्भीर्य नहीं होता, बहुत से मनुष्य अवसर ही नहीं मिलता इसलिये म पैदा करने निकटमी ही होते हैं। वे सोचते हैं कि अगलं की बात नो दूर, पर अन्याय अत्याचार को रोकने स्टेशन पर अपने को उनर ही जाना है फिर दूसरे में भी वह समरथ नहीं हो पाता । जहा जातीय थका करें तो अपना क्या जाता है । इस प्रकार द्वेष है जहां सास्कृतिक एकता नहीं है वहा कानून बार्य उनके हाय क्री पशुना को नहीं मार पाता की गति भी,कुठित हो जाती है। है। परन्तु जब यही बान सरकार के द्वारा श्य और प्रेम में स्वाय भी कारण हो स्वभाव में परिणत हो जाती है तब मनुष्यत्व जाना है। हम तुम्हारे अमुक काम में मदद करें चमक उठता है । वह जाग्रत रहता है और बिना तुम हमारे अमुक काममें मदद करो इस प्रकार किसी विशेष प्रयत्न के काम करता है । यह तो स्वार्थ का विनिमय भी कभी काम कर जाता है एक छोटासा उदाहरण मात्र है, पर इसी दृष्टि से पर वह अल्पकालिक होता है और कभी कभी
राष्ट्रकी बड़ी बड़ी समस्याएँ भी हल करना चाहिये। उसका अन्त बड़ा दयनीय होता है। किसी देश में विविध जातियों या विविध सम्प्र- आज कल अनेक राष्ट्रों के बीच में जो दायों के बीच में अगर संघर्ण होता हो तो उसे सधियों होती हैं वे इसका पर्याप्त स्पष्टीकरण हैं। शान्त करने के लिये संस्कार, स्वार्थ और देह सोधिपत्र की स्याही भी नहीं सुखपाती कि सधिका में से पहिला मार्ग ही श्रेष्ठ है। समन्वय या भंग शुरू हो जाता है। एक राष्ट्र आज किसी