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साप
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पर वैद्यजी इस बात को किसी भी तरह
स्वत्यमोही मे जिप्रकार सत्यपर उपेक्षा मानने को तैयार नहीं थे।
श्रादि छ टोप पाये जाते जाते हैं उसीप्रकार इतने में एक बाई अपने बालककी चिकित्सा प्राचीनतामोही मे भी पाये जाते हैं । म्वत्वमोही
में अपनेपन के पक्षपात के कारण दूसरे के द्वारा कराने आई। उसका कहना था कि यह बालक परसों से ही नहीं जारहा है।
प्रगट किये गये सत्य के बारे में उपयुक्त दोप वैद्यजी ने बालक की नाडी देखी पर कोई
दिग्याई दते हैं जब कि प्राचीनता मोही में प्राची
नता क पनपात के कारण नवीनसत्य या युगखास बीमारी समझ में न आई । तब उनने घालक से पूछा-क्यो भाई, तुम्हें टट्टी नही
सत्य के बारेमे उपयुक दोष दिखाई देते हैं। एक
ही सत्य को स्वत्वमोही पराया समझकर और लगती ?
प्राचीनतामोही नवीन समझकर अम्बीफार बालक ने कहा- लगती तो है।
करता है। वैद्यजी-तब तुम टट्टी क्यो नहीं जाते।। बालक ने कुछ सहमते हुए कहा-मैं उसे
स्वत्यमोही की तरह प्राचीनता मोही भी
जब किसी सत्य का विरोध उपेना आदि नहीं रोक रखता हूँ।
कर पाता तब श्रेयोपहरण करने लगता हैं । वैद्यजी ने आश्चर्य से पूछा-रोक रखते हो।
अगर किसी ने वायुयान बनाया तो प्राचीनता रोकने का कारण ?
मोही को यह सब अपने शास्त्रों में दिखाई देने बालक ने नीची नजर रखकर कुछ लनाते लगता है। प्राचीनता मोही भी सामान्य विशेष ए कहा-मैंने परसों मिठाई खाई थी।
के मूल्य, महत्व और उपयोगिता का अतर भुला र अरे, तो मिठाई से क्या हुआ ? क्या देता है । वह यह भूलजाता है कि ससार में से मठाई खाने के बाद टट्टी नहीं जाना पड़ता
बहुत से सिद्धात है जिनके सामान्य रूपो का पता बालक-मिठाई हर दिन तो मिलती नहीं, मनुष्य ने तभी गालिय
मनुष्य ने तभी लगालिया था जब वह पशु से सलिये सोचता हूँ मिठाई क्या निकालू
मनुष्य बना था, परन्तु इस तुद्र सामान्य ज्ञान वैद्य-धारे मूर्ख, क्या अभी तक मिठाई क बाद मनुष्य न जो कोही विशेषता का
बनी ही रही। उसका जो हिस्सा शरीर मे ज्ञान किया है उनको महत्ता उस शुद सामान्य मलने का था वह शरीर में मिलगया, बाकी तो ज्ञान म नही समाजाती। सारं विश्व को सतप वष्टा होगया, अब वह मिठाई कहा रही ?
जान लेना एक बात है और उसको अगणित वालक-परसों तो मिठाई थी।
चाअरे, तो परसा परसी है, श्राज ज्ञाना का उपयोगिता सामान्य ज्ञान से पर्ण नहीं पाल क्या कोई चीज सहा एकसी बनी रहती हासकता । परन्तु प्राचीनता मोही अपन प्राची. है १ जा यह दवा लेजा।
यह कहकर वैद्य जी ने हलका सा जुलाब यनुचित और हास्यास्पद देदिया।
दोनों के चले जानेपर मित्र ने वैद्य जीसे कहा-भाइजी, आप टट्टी रोकने पर दूसरों को बो इसप्रकार के भी ही जुलाब देते हैं खुद नहीं लेते।
वाली ने मुसकराते हुए कहा -भाई कथाओं को और इतिहास मानता है तुम्हारी वात । जो नियग शरीर की लोगों के मन चिकित्सा का है वही समाज की चिकित्सा का
वही समाज का चिकित्सा का तरह की लालसाएँ और का मोहनाब आज से में भी सुधारक बनता हूँ। और कल्पित एपनाए उठा करती है
विशेषताओं को जान लेना दुसरी इन विशेष
नता मोह के कारण सामान्य ज्ञानो को इतना
वह जानौ या अनजान में श्रेयोपहरण कर जाता है।
प्राचीनतामोही जान में या अनजान में को ो इसप्रकार के भ्रमां का शिकार होजाता है
उसका एक कारण यह भी है कि वह कल्पनाबाभाई कथाओं को और इतिहास को एक मानलेता है।
लोगो के मनमें सुखसाधन के रूपमें नाना