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लूट सकें, इस तरह वे कामहीन होते हैं। और के लिये युद्धो की तैयारी कराते है, सरकारों को भीतर का मोक्ष सुम्ब तो बेचारा से कोसों दूर या राष्ट्रां को हाइवाते है। इस प्रकार अनेक रहता है, वह तो उन्हें मिलेगा ही क्या ये अनर्थ कर करोड़ों अबों की सम्पत्ति इकट्ठी करते जीवार्थशून्य हैं। इनके पास एक भी जीवार्थ नहीं है पर उससे किसी को सुखी नहीं कर पाते । ऐसे है ! वेचारों का जीवन उनके लिये और जगत के लोग सिर्फ अर्थ सेवी (देकार) हैं। ये भी लिये भार के समान है।
__ भयंका है भूभार हैं। २-कामसेवी (दचिंगर ) जिनके जीवन मे ४ अर्थकामसेवी (काजचिंगर) धन कमाना और सिर्फ काम है धर्म अर्थ मोक्ष नहीं है वे देधिगर मौज उड़ाना ही इनका ध्येय है । सम्पत्तिमें कहते हैं है। ये अर्थोपार्जन के लिये ऐसा कोई काम नही इमे किसी की पर्वाह नहीं। विपत्ति में कहते हैं करते जिससे किसी दूसरे की सेवा हो। संयम दुनिया बड़ी स्वार्थी है कोई काम नहीं आता। इंगान आदि की मर्यादा नहीं रखते, आवश्यकता
रुपये का भोग करके पैसा भी दान में न देंगे। होते ही हर तरह की बेईमानी करने को तयार
पीडितों और असहायो को देखकर हँसेंगे। ये होजाते हैं। इस प्रकार अर्थ इनके पास लोग स्वार्थ की मूर्ति हैं। ऐसा कोई पाप नहीं होता! मोन तो ऐसे लोगों के पास होगा हो जिसे करने को ये तैयार न हो आय। पर अस. क्या ? ये लोग बापदानों की कमाई पर विलासी फलताएँ आखिर इनके जीवन को मिट्टी में मिला धनते हैं, या ऋण लेलेकर खाते हैं, या वेषधारी देवी हैं भोग इन्हे ही मोगने लगते हैं और नीरस घनकर विना कुछ सेवा दिये भीख मागकर जैन हो जाते हैं। कोई इनसे प्रेम नहीं करता । स्वार्थी करते हैं । अपने थोड़े से स्वार्थ के पीछे जगत के दोस्त इन्हें मिलते हैं पर सब अपनी अपनी धात किसी भी हित की पर्वाह नहीं करते । ये इन्द्रियो में रहते हैं । आत्मसन्तोष इन्हें कभी नहीं मिलता। के गुलाम होते हैं। इनमें से अधिकाश अपने तीर ये लोग सदाचारी जीवन के उत्तरार्ध मे काफी दुखी और दयनीय । यनजाते हैं। ये समाज के लिये घृणित भी हैं और
HIT तो फिर भी इनका जीवन प्रशंसनीय नहीं है। भयंकर भी।
समाल की या किसी व्यक्ति की दया पर इनका .. ३-अर्थसेवी ( इंकाजर) धनोपार्जन ही
जीवन निर्भर रहता है। ये समाज से जो कुछ इनके जीवन का लक्ष्य है। धन कमाते हैं पर
लेते हैं उसके बदले में कुछ नहीं देते। इनके कमाते हैं किसलिये, यह भी नहीं समझते। संयम,
जीवन में किसी तरह का आनन्द नही होता। उधारता और प्रेम इनमें नहीं होते। ये मितव्ययी
बहुत से साधुवेषी अपने को इसी श्रेणी में बताने नहीं कजस होते हैं। न प्राध्यामिक सुख भोग
करते हैं। वे समाज को कुछ नहीं सकते हैं न भौतिक । यहा तक कि इनमें से ,
"' देत काम का श्रानन्द नहीं पाते, मोक्ष के लायक अधिकाश के कुटुम्बी नक इनसे सन्तुष्ट नहीं रह
१निर्लिप्तता उनमें नहीं होती सिर्फ दुराचार से दूर पाते। धन इकट्ठा कर दुसरो को गरीब बनावे
र रहते हैं। इस प्रकार का विकल जीवन सफल । ना ही इनकी दिनचर्या है। ये समाज की पीठ धर्म टिकाऊ रहता है।
नहीं कहा जा सकता। और न ऐसे लोगों का पर भी मुका मारते हैं और पेट पर भी।
धर्मकामसेवी (धनगर)-धर्म होने यहत मे लोगों के पास करोडों की सम्पत्ति के कारण इनका काम जीवार्थ सीमित है। पर होजाती है फिर भी दिनरात धनोपार्जन में लगे जीवन निर्वाह के लिये कुछ नहीं करचे अनावगाते है । इसलिये वे सरकारी पर प्रभाव डालते या कष्टों को निमन्त्रण नहीं देते आराम से हैं और गहेंगाई यक्षाफर अधिक धन पैदा करने रहते हैं। इस प्रकार अर्शसेवा के बिना उनका