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६ काम-साधनों के सहयोग से इन्द्रिय अर्थात् यश का सुख भी परनिमित्तक है इसलिये और मन को सन्तुष्टि
वह भी काम है। इस प्रकार काम का क्षेत्र ४ मोक्ष-बाह्य द खा से निर्मित रहकर मन बहुत है। से सुप्पशान्ति का अनुभव करना
हा, यह बात अवश्य है कि अगर मनुष्य में ___घर्स और अर्थ के विषय में विशेष कहने कामलिप्सा बढ़ जाय, वह काम के पीछे धर्म को की जरूरत नहीं है परन्तु काम और मोक्ष के भूल जाय तो वह घृणा की वस्तु हो जायगा। विषय में जन साधारण में तो क्या विद्वानों के कामसुख अगर मर्याग का अतिक्रमण न कर भीतर भी गलतफहमी हो गई है। इससे मोक्ष साय या व्यसन न बने और दूसरा के नैतिक तो उड़ हो गया। वह जीवन के बाद की चीज इक्को का नाश न करे तो उपादेय है बल्कि जरूरी समझा गया। दर्शनशास्त्रकारों ने मोक्ष की जो है। तुम कोमतशय्या पर सोते हो, सोओ, पर कल्पना को वह इस जीवन रहते मिल नहीं उसके लिये छीनाझपटी करो यह बुग है और मकती थी इसलिय धर्म अर्थ और काम तोनी की कोमल शम्यापर सोने की ऐसी आदत बनालो सेवासे हो जीवनको सफलता मानी जाने लगी। कि कभी वैसी शम्या न मिले तो तुम्हें नीद हा इधर काम की भी काफी दुर्दशा हुई। निवृत्तिवाद सावे, यह भी बुरा है। इसके लिये अन्याय ने का अब चार पाया तव काम के प्रति घृणा व्यसनी मत बनो फिर काम सेवन कगे तो प्रकट होने लगी उवर काम का अर्ध भी संकुचित हो गया-मैथुन रह गया। इस प्रकार हमारे
कोई बुराई नहीं है। ज्यो त्योकर पेट भरने की पिन क जो मुख्य साध्य ये दोनों ही भले लरूरत नहीं है। कच्ची जली था बेस्वाद रोटी में पड गये।
क्यों खायो ? अच्छे तरीक से मोजन तैयार करो, वास्तव में न तो काम इतनी घृणित वस्तु
कराओ, स्वादिष्ट भोजन लो यह बहुत अच्छा है और न मोक्ष इतवी पारलौकिक, दोनों का किसी दिन चटपटा भोजन न मिले, मिठाइया ने
है। पर जीभ के वश में न हो जाओ कि अगर जीवन में आवश्यक स्थान है। दोना के विना
नदे। अथवा खाद के लोभ सुस को कल्पना नहीं की जा सकती। इसलिये उसके अर्थ पर ही कुछ विचार कर लेना चाहिये।
में पेट की माग से अधिक खाजाओ कि पत्र
न सके, कल बीमार पड़ना पड़े, लंघन करना पड़े, काम का अर्थ मधुन नहीं है किन्तु वह भयो को संवा करनी पड़े और पैसे की बादी साग सूप काम है जो दूसरे पदार्थों के निमित्त हो अथवा स्वाद को लोलुपता से इतना कीमती से हमे मिलता है। कोमल वस्तु का सर्ग, न खाजाओ कि उसके लिये ऋण लेना पड़े, या स्वादिष्ट भोजन पुष्प आदि का सूंघना. सुन्दर
अन्याय से पैसा पैदा करना पड़े। अथवा अगर देखना, सगीन श्रादि सुनना यह सब काम किसी ने उन्हें भोजन कराया हो तो उसे खिलाना
नका सम्बन्ध इन्द्रियों से है और इन्द्रियों के शक्ति से अधिक मालूम पड़े। तुम्हें भोजन कराने लिये किसी विषय की आवश्यकता होती है इस में अगर खिलानेवाले को इतना परिश्रम करना लिय यह पर-निमित्तक मुख है-काम है। परन्तु पड़ता है कि वह बेचैन हो राता है अथवा इतना iसा भी पानिमित्तक सुख है जो इन्द्रियों से खर्च करना पड़ता है कि वह चिन्तित हो तो यह मम्बन्ध नी ग्यता किन्तु मन से सम्बन्ध रखता तुम्हारे लिये असयम अर्थात पाप होगा। मतलब PI नाप शनरंज प्रादि फेमेल नशा और यह है कि प्रत्याचार न करके ओभ के वश में न भो पनि चोगिता के पेस मानसिक काम है। र स्वास्थ्य की रक्षा करते हुए स्वादिष्ट भोजन अपनी गोमा सुनने का प्रानन्द भी काम करना चाहिये। कमी कमी अवाम के लिये