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________________ - - - - - - - - - समभाव कैसे आयगा । प्रश्न-बहुत से प्राणी से होते हैं जिन्हें उत्तर--दिन में एक समय ऐसा भी रक्सो समाज का शत्र कह सकते हैं। जो खूनी है, डाक जिस समय यह सोच सको कि हम नाटकशाला हैं, स्त्रियों के साथ थलात्कार करते हैं ऐसे लोगों से के बाहर है। यह समय प्रार्थना नमाज सन्ध्या जब प्रसंग पड़ जाता है तब उनके विपय में आदि का भी हो सकता है या सह शाम घमने निर कैसे हो सकते हैं बल्कि उन लोग को जय का भी हो सकता है या और भी कोई समय हो भो मौका मिले तभी दण्ड देना चाहिये। जब सकता है, जिस समय एकान्त मिल जाय या मन वे लोग खून या व्यभिचार करें तथ उनसे वर दुनिया की इस नाटक शाला से बाहर खींच ले करें और बाकी समय में उनसे मित्र के समान जाय। इस समय विश्वबन्धुत्व से अपना हाय व्यवहार करें तो इसका कोई प्रशनहीं। पापी भरा रहना चाहिये और दनियादारीमा जब एसी सुविधाएं पायेंगे तो उनके पाप निरंकुश नाते रिश्ते वैर विरोध भूल जाना चाहिये । यह होजायगे। समय है जिसकी याद में जीवन का नाटक उत्तर-को समाज का ऐसा शत्रु है उसे खेलते समय आती रह सकती है। दण्ड देना उचित है और जब मौका मिले तभी दूसरी बात यह है कि जिस कार्य को लेकर , दण्ड देना चाहिये । पागल कुत्ते को मार डालना ठीक है, फिर भी यह याद रखना चाहिये कि वह हमारी प्रतिस्पर्धा आदि हो उस कार्य में हम नाटकशाला के भीतर है बाकी अन्य समय में के लिये उसे मार डालना ठीक समझा गया बीमार है, उससे वैर नहीं है, पर समाज के रक्षण घाहर । मानलो दो आदमी राजनैतिक या सामा- है। इसलिये हम प्रार्थना में बैठे तो पापी क लिक आन्दोलन में भाग ले रहे हैं उनमें मतभेद विषय में भी हमारे मन में निवर वृत्ति प्राजाना है या स्वार्थभेन है तो अब वक उस अान्दोलन से चाहिये । उस समय तो नाटक के खिलाड़ी नहीं सबन्ध है तब तक मतभेद या स्वार्थभेद सम्बन्धी रहना चाहिये । हमारे जीवन में कठोर या कोमल व्यवहार है बाद में समझलो हम नाटकशाला के कैसा भी कर्तव्य आने वह कर्तव्य करना उचित वाहर हैं। है, नाट्वभावना उसका विरोध नहीं करती पर जब तक बाजार में हो तब तक व्यापारी एक तरह की निर वृत्ति पैदा करती है, जिससे का खेल खेलो। घर में आकर बाजारके कामोंको हम सफलता असफलता महत्व लघुत्व की पवाह इस प्रकार देखो जैसे एक खिलाडी अपने खेले नकरके शान्त रह सकते हैं। गये खेल को देखचा है। नाटक का खिलाडी रंग- प्र--अब योगी नाटक के पात्र के समान मंच के बाहर यह नहीं सोचते कि राजा ने क्या जीवन का खेल खेलता है नब उसका उप नकली दिया और नौकर को क्या मिला । वे यही सोचते होता है प्रेम भी नकली होता है। अगर कोई है कि राजा कैसा खेला नौकर कैसा खेला, राम पति ऐसा योगी है तो वह अपनी पत्नी से ऐसा कैसा खेला रावण कैसा खेला। खेज का विरोध ही नकली प्रेम करेगा, परती भी ऐसा ही प्रेम खेल के बाहर नहीं रहता। इसी प्रकार बाजार करेगी, यह तो एक तरह की वंचना है और की बातो पर घर में दर्शक की तरह विचार करो क्षणिक मी घर की बातों का बाजार में या घर के बाहर उत्तर--योगीमें मोह नहीं प्रेम होता है। यह दर्शक की तरह विचार करो, इस प्रकार वैर विरोध प्रेम वचना नहीं है। वंचना यहाँ है जहाँ प्रेम के स्थायी कमी न होने दो। प्रार्थना नमाज सन्ध्या अनुसार कार्य करने की भावना न हो, मन में आदि के समय सब दुर्वासनाएँ हटा दो, सारे विश्वासघात का विचार हो। योगी का प्रेम जीवन को दर्शक की तरह देखो। इस प्रकार सच्चा होता है, निश्चल होता है, स्थिर होता है। समभाव ना जायगा। मोही का प्रेम रूप के लिये होगा या किसी और
SR No.010834
Book TitleSatyamrut Drhsuti Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatya Samaj Sansthapak
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1951
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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