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________________ - - - - - - - कमजोरी है जो उसने दुनियाभर का कूड़ा-कचरा रन--हिन्दू लोग भी अपने किसी एक भी इकट्ठा कर लिया। संदाय को ही मानते हैं, सब हिन्दुओं के . उत्तर-तब तो प्रत्येक समझौते के प्रयल अलग अलग संघरदाय है। सत्र को हिन्दू कह को, शान्ति के प्रयत्न को. सहिष्णुता को कम- देने से सब का समन्वय नहीं होडाता है। मनुष्यों जोरी कहाजायगा, और असहिष्णुता आदि को में फैले हुए भिन्न भिन्न धर्मो को एक मानवधर्म वहादुरी समझा जायगा। जिन दिनां यरुप पोदेकह देने से क्या यह कहा जासकता है कि सत्र स्टेन्ट और रोमन कैथोलिक के नामपर खून वहा- मनुप्या का समन्वयात्मक क मानवधर्म है। रहा था और एक दूसरे को मिटा रहा था उन यदि नहीं, तो हिन्दू धर्म को भी समन्वयात्मक दिनों वह बत्तवान था, और श्राक्ष इस बात को एक धर्म कैसे कहा जासकता है ? वह तो बहुत लेकर सहिष्णुता से काम लेनेवाला यूरुप कम- संत्रमयों का एक सामान्य नामकरण मात्र है। जोर है क्या यह कहना ठीक है । दो परजाएँ आपस में लड़ती रहें तो वहादुर, और सहिष्णुता । __उत्तर---हिन्द धर्म में शैव वैष्णव आदि था समभाव से काम लेकर इनसानियत का परि | जितने सपनाया का समावेश किया जाता है चय दें तो कमजोर, यह मानव विकास या उनक विषय में साधारण हिन्दूओं का क्या रुख जगत्कल्याण का है इसीसे इस बान का पता लगसकता है कि वे एक दल शत्रुदल को जीतकर खाजाता था, पीछे संप्रदाय व्यक्ति में समन्वित भी हुए हैं या मुस सप्रदाय उसमें समझदारी आगई और वह उनको वश में एमा " लमान ईसाइयों की तरह अलग अलग रहकर करके काम लेने लगा, फिर उसमें सामाजिकवा ही किसी एक नामकरण के अन्तर्गत किये गये है। वढ़ी, इस आदान प्रदान में एक दूसरे का कूड़ा.. यद्यपि हिन्दुओं मे संरदाय अभी भी बने कचरा भी थोड़ी-बहुत मात्रा से आया, पर इसी- हए हैं पर साधारण हिन्दू राम नवमी कृष्णाष्टमी लिये विजित शत्रु जीतकर खाजाने की अपेक्षा शिवरात्री गणेश वतुर्थी नवदुर्गा आदि त्यौहारो यह कमजोरी का रास्ता था यह नहीं कहा जा- को अपना त्यौहार समझता है और भाग लेता सकता। अगर इसे कमजोरी ही कहाजाय तो है। और समयसमय पर इनके मन्दिरों में भी इसकी तारीफ ही करना पड़ेगी। हिन्दूधर्म की बात है जब कि मुसलमान न चर्च में जाकर यह कमजोरी है तो भी यह प्रशंसनीय है। ___ बात यह है कि हिन्दू धर्म की नीव डालने ईसा जयन्ती मनाते हैं न ईसाई मसजिद में वालो ने यह समझलिया था कि ऐसी पाठशाला जाकर मुहंमद जयन्ती मनाते हैं। एक तरफ हिंदू वनाना व्यर्थ है जिसमें सब को एक ही कक्षा में शिवजी को जल चढ़ाता है दूसरी तरफ विष्णुजी पढ़ाया जाय। धीरे धीरे ही उन्हें उच्च कक्षा मे को भोग लगाता है। यह बात हमार में एकाध पहुँचाया जासकता है । इसप्रकार एक तरफ हिन्द हिन्दू को छोड़कर बाकी नव सौ निन्यानवे हिंदुओ न धर्मने ऊँ ऊँचे सिद्धान्तों का कार्यक्रम त के बारे में कही जासकती है। इस तरह के हिंद दूसरी तरफ पिछडे हुए लोगों के साथ धार्मिक शास्त्र भी बनग हैं जिनमें कहा गया कि शिव बलात्कार नहीं किया। ज्ञान प्रचार पर भरोसा भक्ति के बिना विष्णुक्ति सफल नहीं होती किया। कक्षाएं अलग अलग रहीं पर पाशामा विष्णुभक्ति के बिना शिवभक्त सफल नहीं होती। एक वनी ! यह समन्वय एक दिन में किसी एक इसपकार शास्त्र में और व्यवहार में यह सम आदमी के जरियं नहीं हुआ किन्तु कई हजार न्वय सिद्ध किया गया। इतना ही नही दार्शनिक वर्ष में अनेक व्यक्तियों ने मिलकर किया। यह . ढंग से भी यह समन्वय सिद्ध किया गया ब्रह्मा कमजोरी नहीं, उदारता और भाईचारे का परि- विष्णु महेश एक ही परमात्मा के जुदे-जुदे कामो रणाम था ! इसे चतुरता भी कह सकते हैं। के अनुमार जुटे जुड़े नाम है यह बात भी कही
SR No.010834
Book TitleSatyamrut Drhsuti Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatya Samaj Sansthapak
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1951
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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