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विवाह
[७१ डालकर लिखाने का कारण यह था कि पुराने जमाने में स्लेट पेंसिल का आविष्कार नहीं हुआ था। यह लिखांना लेखनकला के परीक्षण के लिये था । लड़की से उसी थाली में घड़ा वगैरह बनवाया जाता था इस प्रकार लड़की की परीक्षा चित्रकला आदि में ली जाती थी। किसी जमाने में इन परीक्षाओं का उपयोग रहा होगा पर आज तो बिलकुल निरर्थक और हास्यास्पद हैं। . . . . एक रिवाज़ यह था कि बारात की विदाई के समय. वर श्वसुर गृह के चौके में जूता पहिने जाया करता था और रसोई के चूल्हे को जुते से ठुकराता था, कुछ दूल्हे इतने जोर से लात मारत थे कि चूल्हा फूट जाता था और दूसरे दिन कन्यापक्ष के लोगों को रोटी बनाने तक की तकलीफ़ होने लगती थी। मुझे भी चूल्हे में लात मारने के लिये ले जाया गया । मेरी सासूने कहा कि चल्हे को लात मार दो। चौके में जूता पहिन कर आने में ही में बहुत संकुचित हो रहा था फिर जब चल्हे में जता मारने की बात कही तब तो बहुत ही लज्जित हो गया । सोचाजिस चल्हे पर सास ससुर के लिये रसोई बनती है कल जहाँ मुझे . भी भोजन करने के लिये आना पड़ेगा उसको जूते से ठुकराना
कहाँ की मनुष्यता है ? मुझे कुछ विचार में पड़ा देखकर सासूजी ने फिर कहा--क्या सोचते हो लाला, चूल्हा फोड़ मत देना । इधर मैं चौक में जता पहिन के आने के संकोच से ही गला जा रहा था चल्हा फोड़ने की बात तो दूर रही । मैंने कहा-मुझ में यह न होगा, मैं चूल्हे में लात नहीं मार सकता। पर सासूजी ने कहाऐसा नहीं हो सकता तुम धीरे से. लात मार दो, नहीं तो कल