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विवाह
[६७ गेस की नली से आराम से मार डाला और खुद मरने की प्रतीक्षा करने लगी। पर वह मरी नहीं, कुछ दिन बाद अच्छी हो गई। मुकद्दमा चलने पर कोर्ट ने तो उसे फांसी की सजा सुनाई परन्त कोर्ट की सिफ़ारिश से ही सम्राट ने उसे माफ़ कर दिया । सचमुच वृद्धा का अपराध माफ़ कर देने लायक था क्योंकि जो कुछ उसने किया था प्रेमवश किया था। यह उस बच्चे का दुर्भाग्य और वृद्धा की मूर्खता समझना चाहिये कि वह माता के वात्सल्य का शिकार हो गया।
इसी प्रकार पिताजी ने इस भ्रम के कारण कि उनके अकस्मात् स्व"वासी होने पर मेरी बहुत. दुर्दशा होगी मुझे बालविवाह की वेदी पर चढ़ाने का निश्चय कर लिया । :.
मेरे एक दूर के रिश्तेदार थे जिन · के एक मात्र पुत्र का देहान्त हो चुका था एक पुत्री रह गई थी जिस. का विवाह वे मेरे साथ , कर देना चाहते थे । वीस पच्चीस तोले के सोने के आभूषण भी वे मेरे यहां रख गये थे। पर मेरे पिताजी को उनसे काफी घृणा थी। क्योंकि वे किसानों से प्रतिमास एक आना रुपया व्याज लेते थे. और कभी कभी हिसाब में गड़बड़ी करके उन्हें और ठगते थे । इसलिये पिताजी कहा करते थे कि इनका धन बेईमानी का है इसलिये इनकी लड़की से..अपने लड़के की शादी न करूंगा। एक दिन पिताजी ने उक्त श्रीमान् के सब आभूषण वापिस कर दिये । इस प्रकार यह सम्बन्ध टूट गया।
. पिताजी भावुक.. थे परन्तु . उनकी भावुकता ने . ही इतना त्यागं करने को विवश किया. था वह वात नहीं मालूम होती।