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________________ ५४] आत्म कथा - इसके बाद मुझे जैन न्याय मध्यमा का कोर्स पढ़ाया जाने लगा। कलकत्ता युनिवर्सिटी के संस्कृत परीक्षा बोर्ड में जैन न्याय भी मंजूर हो गया था, और उस समय प्रथम परीक्षा देना ज़रूरी नहीं समझा जाता था। जैन न्याय का शिक्षण वडे :डितजी (पं. गणेशप्रसादजी) देते थे और वे कुछ महीनों के लिये बनारस जा रहे थे इससे हमारी परीक्षा मारी जाने का डर था । इसलिये मुझे और मेरे सहपाठी भाई दयाचन्दजी को वे वनारस ले गये । हम . लोग गये तो तीन महीने के लिये थे पर परिस्थिति कुछ ऐसी बनी कि उसके बाद सागर पाठशाला का सम्बन्ध छूट ही गया । ... [१०] तब के कुछ संस्मरण सागर पाठशाला में रहते हुए 'अनेक तरह की विशेष घटनाएँ हुई उनमें से कुछ तो ऐसी थीं जिनका जीवन पर बड़ा प्रभाव पड़ा। कुछ सिर्फ स्वभावप्रदर्शक ही थी । । __ . पुजारी-सागर पाठशाला में जाने के पहिले पूजा करने का जितना शौक था, सागर पाठशाला में जाने पर उतना न रहा । इसलिये विद्यार्थियों के साथ पूजा में बहुत कम शामिल होता था । प्रायः स्वाध्याय किया करता था । इसके लिये कुछ और कथाग्रंथ ढ़ लिये थे। लेकिन एकदिन मैं काकागंज के मन्दिर गया, यह मोहल्ला · बस्ती के बहुत. बाहर है एक तरह से पुरानी वस्ती के समान है। मराठों के समय में : यह अच्छा रहा होगा। उस समय यहाँ जैनियों की काफी वस्ती होगी पर अब तो एक मन्दिर रह गया है। और उस समय वहाँ सिर्फ एक वृद्धा का घर था । वह वृद्धा गरीवः
SR No.010832
Book TitleAatmkatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatya Samaj Sansthapak
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1940
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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