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समर्पण:
भ. सत्य भ. अहिंसा की सेवा में -
मेरी माता मेरे पिता !
जिस धृष्टता से दुनिया को अपनी कहानी सुनाने बैठा, क्या वह धृष्टता दुनिया सह सकेगी ? उसमें ऐसी क्या
बात है जिसे दुनिया सुनें । माता-पिता, ही ऐसे होते हैं जो सब कुछ जानते हुए भी बालक की भद्दी कहानियाँ या तुच्छ बातें प्रेम से सुना करते हैं - इसीलिये अपनी यह तुच्छ कहानी तुम्हें ही समर्पण करता हूँ। और किसी को समर्पण करने की हिम्मत ही नहीं होती ।
तुम्हारा तुच्छ भक्त'दरबारी....