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________________ २६२ ] आत्मकथा दिया गया। - इस प्रकार की दृढ़ता का कारण यह था कि मैंने उसके विचारों पर कभी जबर्दस्ती नहीं की । मेरा कहना सिर्फ यह था कि अवसर पर किसी शिष्टाचार का भंग न होना चाहिये और इसका वह बराबर पालन करती थी। फिर मतभेद मिटजाने पर तो कुछ 'कहने की भी जरूरत नहीं रही थी। चारों वर्गों के लोग मेरे यहां चौके में भोजन कर जाते थे और उसको कोई इतराज नहीं था। . स्त्रियों को सुधार के पथ पर लाने के लिये यही नीति ठीक है कि उनके साथ जबर्दस्ती न जाय और न उनपर उपेक्षा की जाय, धीरे धीरे प्रेमपूर्वक उन्हें समझाया जाय । मनुष्य मात्र के लिये । यही नीति उपयोगी है परन्तु स्त्रियों के लिये कुछ विशेष मात्रा में उपयोगी है। . हां, यह भी मानना पड़ता है कि अगर शान्ता में कुछ सहज योग्यता न होती तो मेरी इस नीति से भी कुछ विशेष लाभ न होता। पर इस प्रकार सहजयोग्यतारहित व्यक्ति बहुत कम होते हैं इसलिये साधारणतः यह नीति उपयोगी है। . दाम्पत्य के अनुभव कडुए मीठे अनेक तरह के हैं। मेरे दाम्पत्य का प्रारम्भ ऐसी अवस्था से हुआ था जिसमें अगर बर्बरता न कही जाय तो भी पर्याप्त पशुता थीं यह कहा जा सकता है। दम्पति में मारपीट के अवसर आजाना एक तरह की बर्बरता ही है वह मेरे दाम्पत्य में नहीं थी पर मूर्खता :काफी थी। धीरे धीरे अनुभवों ने मेरे दाम्पत्य को मनुष्यता के द्वार पर पहुंचा दिया था।
SR No.010832
Book TitleAatmkatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatya Samaj Sansthapak
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1940
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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