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आत्मकथा विरोधियों ने अपनी भूल समझ ली। उनमें से कुछ ने कहा भी कि अगर आपको इन्दोर से न भगाते तो अच्छा था । यहां आप हम पर उसका दशांश आक्रमण भी नहीं कर सकते थे जितना कि आज कर रहे हैं।
मुझे अपने जीवन में गति कैसे मिली इसके छोटे बड़े अनेक कारण हैं किन्तु इन्दोर विद्यालय से निकाले जाने से जो मुझे गति मिली वह अगर न मिलती तो मेरी जीवनयात्रा खटारा गाडी की चालसे हुई होती जव कि इन्दोर छोड़ने से वह रेलगाड़ी की चालसे (भले ही वह डाकगड़ी न हो) होने लगी । इसमें मुख्य निमित्त विरोधी विद्वान और सेठ हुकुमचन्दजी हैं ।
(२१) बम्बई में आजीविका
इन्दोर से काफी सन्मान के साथ विदाई लेकर जब गाड़ी बदलने के लिये खंडवा उतरा तब खंडवा के बहुत से मित्र स्टेशन पर स्वागतार्थ उपस्थित थे । स्टेशनपर ही फलाहार वगैरह कराया
और गाड़ी में चढ़ाया । विदाई के समय एक भाई वोले--एकाध हफ्ते में फिर आपके स्वागत के लिये यहीं आना पड़ेगा। - मैंने कहा-क्यों ?
. वे बोले-बम्बई का भारी पानी आपको क्या पचेगा इसलिये आपको जल्दी लौटना पड़ेगा तब हम आप का फिर स्वागत करेंगे। - यह भक्तिप्रदर्शन क्या था एक तरहका शाप था। मैं मन ही मन कुछ खिन्न हुआ, कुछ हँसा, फिर आभिमानसे गुनगुनाया-अच्छा, सत्य के लिये समाज से तो लड़ना ही पड़ रहा है अब पानी से भी लड़गा।