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इन्दोर में
[ १४३ बन गया हूं । यद्यपि इस मिश्रण के दोषांश को हटाने की और गुणांश को बढ़ाने की कोशिश करता पर प्रारम्भ के संस्कार निर्मूल नहीं कर सका हूँ।
अध्ययन इन्दोर के जैनसमाज के जीवन में न मिल सकने का और सहज एकांतप्रियता का असर यह हुआ कि अध्ययन की · गति तेज़ हो गई । विद्यालय की लायब्रेरी की फ़ी सदी नब्बे पुस्तकें मैंने पढ़ डाली । राजनीति, अर्थशास्त्र, समाज-शास्त्र, शासन-प्रणाली, विविध देशों और समाजों के इतिहास, राज्यक्रांतियों के इतिहास महापुरुषों के जीवन-चरित्र, नाटक, उपन्यास आदि कथा साहित्य भ्रमणवृत्तान्त दार्शनिक और वैज्ञानिक लेख आदि जिस किसी विषय की पुस्तक मुझे मिलती थी मैं पढ़ डालता था । समाचारपत्रों में लोग समाचार मुख्यता से पढ़ते हैं पर मैं लेखों को मुख्यता से पढ़ता था, इसका परिणाम यह हुआ कि अंग्रेजी का ज्ञान न होने पर भी मेरी नजर के सामने दुनिया घूमने-सी लगी। विचार और चिंतन के द्वारा उन्हें पचाकर अपने रूप में लाने की भी कोशिश की इसका यह परिणाम हुआ कि विरोधी वातावरण के रहते हुए भी मेरी सुधारकता दिन दूनी रात चौगुनी पनपने लगी।
___ इन्दोर में ही मैंने हिंदी-साहित्य सम्मेलन की विशारद और साहित्यरत्न की परीक्षाएं पास की। संस्कृत की अन्य परीक्षाएं भी देने की तैयारी की थी पर असहयोग आंदोलन उठ खड़े होने से उन परीक्षाओं में नहीं बैठा। .