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सिवनी में कुछ माह
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सकते हैं, उनके ये परमोपासक हैं, जो अपने व्यवहार से इस बात की घोषणा करते रहते हैं कि जगत में अगर किसी धर्म को स्थान नहीं है तो वह जैन-धर्म है ।
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लोग कहेंगे 'उह ऐसा तो चलता ही है यह तो व्यवहार है, हर दुवान में और हर घर में ऐसा होता है, ऐसी रोज़मर्रा की ' साधारण घटनाओं पर तत्वज्ञता के गोले छोड़ना एक तरह का पागलपन है" इसमें सन्देह नहीं कि वह मेरा पागलपन था क्योंकि व्यवहार के बहुत आगे चले जाना भी बहुत पीछे रह जाने के समान पागलपन है । पर इसमें भी सन्देह नहीं कि जो दुनिया इस पागलपन को कर रही है उसने तो नरक की कुल्पना को प्रत्यक्ष ही बना दिया है। लोग चाहते हैं कि सब लोग हमारे साथ ईमानदारी और प्रेम का व्यवहार करें पर ईमान और प्रेम का वे आदर नहीं करते | बड़े आदमी और भले आदमी शब्द का अर्थ आज धनवान
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है। दुनिया की पर्वाह नहीं करती कि धन तुमने कैसे पाया और उसका तुम क्या उपयोग करते हो ?.दुनिया किसी भी तरह से पाये हुए धन की उड़त करे और फिर हर एक से ईमान और प्रेम की आशा खखे ये दोनों बातें नहीं हो सक्ती हम जिसकी कीमत अधिक करेंगे उसी की तरफ लाग बगे । हम धन का सम्मान अधिक करते है इसलिये सौ सौ पाप करके भी मनुष्य उसी तरफ बढ़ता है । फिर चाहे दिगम्बरस्य कापूजारी जैन हो चाहे मग आचारनास्तिक हो, दोनों मे कोई अन्तर नहीं रहनाता |
धनवान में कोई गुण हो, युग हो तो उन का भी आदर. न करना चाहिये यह बात नहीं है, मतलब नहीं है कि धनी