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आत्म-कथा पंडितजी की यह इच्छा थी कि मैं माफी माँगू और इसी. -लिये उनने पढ़ाना बन्द कर दिया । विद्यार्थियों ने कहा-अब ? मैंने कहा पंडितजी जैसा गोम्मटसार पहाते हैं उससे अच्छा तो मैं पदा सकता हूं । विद्यार्थी चुप रहे । पंडितजी ने देखा कि ये कमबख्त
अभी भी नहीं झुके तो उन ने इसी बात पर कमेटी को त्यागपत्र : भेज दिया और विद्यालयके बाहर रहने लगे । उनका विश्वास था कि इस अन्तिम शस्त्र. से विद्यार्थी झुक जायगे पर पासा उलटा ही पड़ा । ". जाच होने पर मंत्री को मालूम हुआ कि छोटी सी बात पर · विद्यार्थियों का खाना बन्द किया गया, विद्यार्थी पढ़ने आये उन्हें नहीं पढ़ाया गया, इसलिये पंडितजी की तरफ उन्हें सहानुभति न रही । पंडितजी पदसे सिर्फ धर्माध्यापक थे पर उनका स्थान सर्वेसर्वा के समान था । वे अपनी चतुराई से अनेक वार विद्यालय के मंत्रियों को और अनेक अधिष्ठाताओं को निकलवा चके थे। पर उस दिन वे एक छोटीसी घटना में उलट गये। उनके एक रिस्तेदार ने सब विद्यार्थियों को अकेले अकेले में ले जाकर कहा कि दरबारीलाल माफी मांगने को तैयार हैं अब तुम लोगों को उनके साथ पंडितजी के पास चलने में क्या आपत्ति है ? विद्यार्थियों ने कहा-जत्र दरवारीलाल तैयार हैं तब हम भी तैयार हैं. इस तरह 'सब को तैयार कर वह मेरे पास आया और बोला-सव विद्यार्थी पंडितजी के पास जा रहे हैं: आप भी चलो तो अच्छा, नहीं तो सब जाही रहे हैं। मैं मन में काफी चिन्तित हुआ पर ऊपर से कहा"जिनने पंडितजी का अपमान किया हो उन्हें अवश्य. जाना चाहिये मैंने नाम भी नहीं लिया तब क्यों जाऊँ ? जाने का अर्थ तोः अनपराध