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(७९) गाथाना अर्थमा अर्थदीपिकाना क ए विस्तारे वर्णन कर्यु छे. वली शांतिनाथजी महाराजना आगला भवोमां पोसह लइ शास्त्र संभलावे छे एम अधिकार छे. वली एवी रीते घणे ठेकाणे धर्मोपदेश देवानों अधिकार छ, वास्ते शक्ति प्रमाणे धर्मोपदेश करे ने जीवने हरेक प्रकारे धर्ममां जोडे ते भावदया लक्षण.
पांचमुं आस्तिक्यता लक्षण ते-जिनराजे प्ररूपेला आगम उपर, पंचांगी उपर प्रास्ता होय, पण मांहि शंका न होय. कारण जे जिनेश्वर के ते राग द्वेष रहित छे तेथी तेमने वधतुं ओछु कहेवानी जरूर नथी एवो निर्धार कर्यों छे. वली जे आगम छे ते न्याय युक्त छे. आगमना वचनमां कोइ जग्या उपर शंका थाय एवं नथी. जे जे वातो छे ते न्यायथी सिद्ध थाय छे. वली जे जे वस्तु आगममां कही छे ते करतां अधिक दुशीवेली बीजा शास्त्रोमां देखाती नथी. आत्माने राग द्वेषथी मुक्त करवो ते जैनशासनमा कयुं छे. ते ज वेदांत, न्याय, सांख्य, बौध ए सर्वे दर्शनवाला कहे छे, पण जैन करतां अधिक मोक्षनां साधन वीजा दर्शनोमां देखातां नथी. वली सूक्ष्म आत्म स्वरूपनी वातो जेटली जैनदर्शनमां बतावेली छे, एटली बीजा कोइ पण दर्शनमां देखाती नथी. वली निजं स्वरूपमा जोडनारां व्यवहारिक साधन जैनमा बताव्यां छे, तेथी अधिक साधन बीजा दर्शनोमां देखातां नथी अने जैननां साधनोथी जलदी राग द्वेषनी प्रकृति शांत थाय छे. वली पुण्य पापना माननारा नास्तिक शिवायना यवन लोक प्रमुख छे पण जैनथी अधिक माननारा कोइ नथी. जैनमां पुण्य पापनां स्वरूप सारी रीते दर्शाच्यां छे अने मोक्ष साधनना उपायो जे जे वताच्या छे ते ते सर्व दर्शन करतां अधिक देखाड्या छे. तेथी चित्तमां जैनदर्शन उपर अतिशय आस्ता थइ छे. वली नास्तिकतानो मत न्यारो पडे छे. ते मत कंइ व्याजबी नथी. नेनुं स्वरूप थोडं ल
. रायपसेणी सूत्रमा केशी गणधर महाराजे परदेशी राजाने समजाव्या छे, तेमां नीचे मुजव सारांश छे.