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( ५० ) दुगंछा, स्त्रीवेद, पुरुषवेद, नपुंसकवेद ए पर्चास कषाय छे. तेनी विरतारे ओलखाण नीचे मुजब .
अनंतानुबंधी क्रोध, जेने होय तेना मनमां अतिशे द्वेष होय, जे बखते ए क्रोधनुं जोर होय ते वखते शरीर पण लाल लाल थइ जाय, जेना - उपर द्वेष होय तेनुं मरतां सुधी पण वैर मूके नहीं, मरती वखत पण कहे जे आ भवमां वैर लेवायुं नथी तो श्रावता भवमां पण लइश, वली पोताना पुत्र प्रमुखने पण कहे जे में तेनी साथे वैर राखेलुं छे माटे तमे पण वैर छोडता नही. वखत आवे त्यारे तेनुं बगाडवामां भूल खाता नहीं, सामो माणस शांत होय अने खमाचवा आवे तो तेनी साथे उलटो लडे, वली तेनुं सहज काम पोताना हाथमां आव्युं होय तो तेने 'म्होढुं नुकशान करे. नुकशान करवानी तुरत शक्ति वाले नही तो लाग श्रावे त्यारे नुकशान करवामां जरा पण कसर राखे नही. एवी जे कषायनी परिणती छे तेनुं नाम शास्त्रमां अनंतानुबंधी क्रोध कह्यो छे. जेम पथ्थरनी अंदर फाट पडी होय ते फाट पाछी मले नही, तेम अनंतानुबंधी क्रोधवालानो क्रोध मरतां सुधी शमे नही. ए क्रोधना प्रभावे जीव नरके जाय छे अने महा तित्र दुःख भोगवे छे. वली ए क्रोधना प्रभाव - थी जीव समकित पामतो नथी. ए क्रोध जाय त्यारे ज जीव समकित पामे छे.
अनंतानुबंधी मान पथ्थरना थांभला समान होय छे. जेम पथ्थरनो थांभलो नमावतां नमे नही तेम अनंतानुबंधी मानवालो पोतानी म्होटाइमां एटलो मच्यो रहे छे के, महा गुणवंत मुनि महाराज होय तेमने पण नमस्कार करतो नथी अने करवाना भाव पण थता नथी. वली पोते 'धर्मगुरु थइने धन, स्त्री विगेरे भोगवे बीजा गुणवंत पुरुषोए धन, स्त्रीनो "त्याग करयो होय, समताभाव आदरी संसारथी विमुख थया होय तेवा - पुरुषोने पोते नमवा योग्य छे तेम छतां पोते नमे नही अने उलटो तेमनी पासे नमस्कार करावे, ते नः करे तो. कराववानी इच्छा धरावे. वली
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