________________
(२७८) ते क्षीणचंद्र कह्यो छे, ते निर्बल जाणवी.
उदयशुद्धि ते नवमांशनो स्वामी लग्नकुंडलीमां लग्नना स्वामीने जोतो होय तो ते उदयशुद्धि कहीये. ते प्रतिष्ठा दीक्षामा जोवं.
अस्तशुद्धि ते नवमांशनो स्वामी लग्नना सातमा स्थानकने जोतो होय ते अस्तशुद्धि कहीये.
लग्नशुद्धिमां एम पण कहे छे जे अस्तशुधि उदयशुध्धि प्रतिष्ठा दीक्षामा जोवानी जरुर नथी. .एम केटलाएक आचार्य कहे छे. बार राशिमां चर स्थिर ने द्विस्वभाव,
चरराशी. मेष, कर्क. तुला. मकर. . स्थिरराशी. वर्ष. सिंह. वृश्चिक, कुंभ..
द्विस्वभाव. मिथुन, कन्या. धन. मीन. एमाथी प्रतिष्ठामा स्थिरलग्न लेवू. ते नहि तो द्विस्वभाव लेवू, अने श्रारंभसिद्धिमां बने त्यां सुधी द्विस्वभाव लेवं, ने ते न आवे तो स्थिर लेवं, ने ग्रहो घणा ज उत्तम आवता होय तो क्वचित् चर पण लेवु.
नारचंद्रमां लग्नकुंडलीमां ग्रहो पज्या होय तेना योगायोग तथा फल कह्यां छे ते
चंद्र साथे रवि मंगल होय तो अग्निभय थाय. चंद्र साथे शनि होय तो मरण भय. चंद्र साथे बुध होय तो समृधि करे. चंद्र साथे गुरु होय तो महिमा प्रभाव करे, चंद्र साथे शुक्र होय तो सर्व सौख्य.
प्रतिष्ठाकुंडलीमा वि अबल होय तो घरना धणीनी हानी. चंद्र विबले स्त्री मरण, शुक्र विबले धन नाश, गुरु विबले सुख प्रतिष्टा कुंडलीमां नीचग्रह क्रूर ग्रहे युक्त होय वा, अस्तनो वा,शत्रुक्षेत्रनो ग्रह वा वक्री ते विबल जाणवो, शनि रवि वक्री होय तो प्रासादनो नाश करे.
मंगल, शनि, राहु, रवि, केतु, शुक्र पण श्रा ग्रह सहित ए ग्रहमांथी सातमो होय तो सूत्रधार, श्राचार्य, श्रावक ए सर्वेनुं मृत्यु करे. मंगल,