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. (२५३) प्रश्न-१८० विद्याचारण जंघाचारण मुनि नंदीश्वर द्वीपे जिनप्रतिमा ने वांदवा जाय ए अधिकार शेमा छे ?
उत्तरः भगवतीजीमा पाने १५०६ मे छे. प्रस्नः-१८१ श्रावक श्रावकने, तथा श्राविकाने व्रत उच्चरावे के केम? . उत्तरः-श्रावक-श्रावक श्राविकाने व्रत उच्चरावे छे. ज्ञाताजीमां छापेली प्रतने पाने १०१६ मे जितशत्रु राजाए सुबुद्धि प्रधान पासे धर्म सांभलीने प्रतिबोध पामी श्रावकनां बार व्रत सुबुद्धि प्रधान पासे लीघां के. वली पञ्चल्खाणना करावनार जाण अजाणना चार भांगा कह्या के. ते आ प्रमाणे-करावनार जाण ने करनार जाण ए पञ्चख्खाण शुद्ध, करावनार जाण ने करनार अजाण पण करावनार जाणे छे तेथी व्रतनी विधि बतावे, वास्ते ए पण शुद्ध' कह्या छे. पण या दाव्यु छे जे तथाविध गुरुने अभावे पिता, दादा, मामा, भाई, वा कोइनी पण साक्षी राखीए. तेश्रो अजाण छे, पण पोते जाणे छे तेथी शुद्ध छे. चोथो भांगो करावनार अजाण ने करनार पण अजाण अशुद्ध पञ्चरूखाण कई छे. आवी रीते प्रवचनसारोदारनी टीकामां ३९ मे पाने कहयुं छे. ए उ. परथी त्रीजा भांगाथी सिद्ध थाय छे जे पिता विगेरे अजाण छे, तेमनी समक्ष पच्चख्खाण लेवु तो जाणकार श्रावक पासे लेवू ए तो वधारे यो. ग्य छे. श्रावी चौमंगी योगशास्त्रमा तथा पंचाशकमां पण छे. वास्ते मुनि महाराजना अभावे श्रावक पासे पच्चख्खाण लेवू योग्य छे.
प्रश्नः-१८२ श्रावकने फासुक पाणी पीवाथी शुं फायदो के ? कारण जे आरंभ तो करवो कराववो रह्यो छे, तो सचित्तनुं अचित्त करीने पीयूँ तेथी शुं फल ? ___उत्तरः-श्रावकने सचित्त वस्तुनी मूर्छा उतरी ए मोटो लाम छे. कर्मबंधन छे ते इच्छाए करीने छे, ते सचित्त वस्तुनी इच्छा बंध थइ गइ, ए मोटो लाभ छे. वली सचित्त जल जगतमा छे ते बधा उपर चित्त मोकलुं छे, ते फासुक जल पीनारने बंध थइ जाय छे, फासुक