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( २४२ ) ने वोशीरावुं छु अने एक आत्मानुं आलंबन ग्रहण करी मरणनी बीक ने छोडीने अदीनपणे महारो आत्मा अविनाशी छे, तेनुं आलंबन लडं छं. ते शिवाय महारो कंइ पदार्थ नथी. आत्माना पोताना श्राचारनां रहीने पण मरयुं, ने अज्ञानपणे पण मरयुं, मरण कंइ कोइने छोडना - नुं नथी, तो अज्ञानपणे मरण करवाथी आत्मा कर्मे करी लेपाय अने भव भवने विषे अनेक प्रकारनां दुःख भोगवत्रां पडे; माटे महारा आमानो आचार जे जे शरीरने थाय ते जाणवुं, पण ते मने सुख दुःख याय छे एम मानवुं जोग्य नथी. माटे हुं महारा आत्मस्वभावने जाणवा रूप रहीने मरण करुं के जेथी महारो आत्मा निर्मल रहे ने भलीनता थाय नाही.
इहां कोइने शंका थाय जे प्रत्यक्ष दुःख थाय ने शरीरने थाय छे एम केम मनाय ? ते विषे जाणवुं जे ज्यां सुधी पोतानुं आत्मस्वरूप नथी जाण्युं, ने तेनुं फरसज्ञान नथी थयुं, त्यां सुधी तमारा मनमां मने दुःख थाय के एम लागशे, पण तेमने तमारा श्रात्मस्वरूपनुं ज्ञान अनुभवगम्य थशे, जेम प्रभुजीए कह्युं छे एवुंज मारुं श्रात्मस्वरूप छे. ते न्याय जुक्तिए करी चित्तमां शुद्ध थशे एटले तमारा भाव एवा थशे जे, हवे महारा आत्मधर्मथी बीजी रीते नहि वर्तु. आ शरीर प्रमुख जड पदार्थ छेनी साथे कंइ पण महारो संबंध नथी एवं थशे. पछी शरीरने कोइ कापी नांखशे, वा रोगनी वेदना थशे तेमां तमारुं चित्त जशे नहि तमारा मनमां मने दुःख थाय छे एम आवशे नहि. जेम के कोइ माणस भवाइ जोवा जाय छे, या नाटक जोवा जाय छे ते आखी रात उजागरो करे छे, ते उजागरानो खेद मनमां आवतो भां उभां पग दुःखे छे, ते दुःख मनमां श्रवतुं नथी; केमके जोवामां चित्त व छे. वली लग्न - विवाहना काममां अनेक प्रकारनी महेनत करे छे, पग दुःखे छे; पण लग्नना हर्षमां ते दुःख मनमां श्रावतुं नथी. 'आभूषण पहेरे छे तेनो भार पहेरवाना सुख आगल मनमा लागतो नयी.
नथी, उ