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प्रकारनो विकला नथी. आ जगत्नां संसारी जीवने संसारमा छे त्यां सुवी विकल्प छे ने सर्वथी संसार छूटी गयो ने सिद्ध महाराज थया एटले विकल्पनुं नान नथी. त्या निर्विकल्प दशानुं पूर्ण सुख छे ते एवं छ जे मुखे कही शकाय नहि. पाखा जगतर्नु सुख एकठं करीए ते करतां अनंतगणुं सुख छे ते सुखनु वर्णन केवलज्ञानी मुखे करीने आ उखा पर्यंत कही शके नहि एरलु छे. माटे सिद्धना सुखनो पार नथी, पण जीव आत्मसुखना अंशने सम्यक्त पामशे त्यारे तेने अनुभव थशे अने सारे सिद्धने केटलुं सुख छ ? ते प्रत्यक्ष समजाशे.
प्रश्नः-१६१ मनुष्य मरण वखने संथारो करे ते शी रीते १ तथा तेमां शुं भावे ? अने तेथी झुं लाम थाय ?
उत्तरः-हालना कालमा आउखानी चोकम खबर पडती नथी. तेथी जावजीवनो संथारो बनी शके नहि. केम के भत्तपञ्चख्खाणपयन्नामां कह्यु छ के, केवलज्ञानी, मनवज्ञानी, अवधिज्ञानी, पूर्ववर एवा मु. नि महाराजना कहेबाथी वा, निमित्तशालयी वा, देवताना कहेबाथी आयुष्यनी खबर पडे ने खात्री थाय तो जावजीवनुं अनशन करे अने एवा महा पुरुषोनो हाल कालमां विरह छे, तेयी आयुष्यनी चौकस खबर पडे नहि, तो सागारी अनशन को. सागारी अनशन एटले एक दिवस वा, बे दिवस वा, एक पहोर वा, वे पहोर जावत् बे घडी, चार घडी वा अभिग्रह राखे जे मूठी वाली नवकार गणु त्या सुधी सर्व आहारनो त्याग तथा संसारी सर्वे काम करवानो त्याग, कंइ पण पाए आरंभनां काम करवा नहि. एवी रीते संयारो करवाना विधि सर्वे करवो. ते अवसर न मले तो द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव जोइने उच्चरावीए. ते आलावानो विधि.
अहन्नं भंते तुम्हाणं समीये, भवं चरिमं सागारियं पचल्खामि. जद में हुज्ज पमाओ, इमस्स देहस्त इमाइ रयणीए ॥ अथवा । इमाइ वला ए। आहार मुवहि देह, सम्वं तिविहेण वोसरियं ॥ ३॥ अरिहंत सखियं;