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(१२) करतुं नथी, राजा जाणे तो दंड करे छे अने आवता भवमा नरकनां दुःख भोगवा पडे छे; माटे जेम बने तेम कामने वश करवो. २ क्रोध-कोइना उपर क्रोध करवो नहि; सर्व प्राणी उपर समभाव धारण करवा; एक क्रोडपूर्व सुधी संयम पाली उपार्जन करेलु फल क्रोध करवाथी क्षण वारमा नष्ट थइ जाय छे अने कुगतिना भाजन थर्बु पडे छे, हालाहल विष खाधू होय तेथी एक वखत ज मरण थाय छे, पण क्रोध रूपी हलाहलने वश थएला प्राणी- अनंतीवार मृत्यु थाय छे; माटे निरंतर क्षमागुण धारण करतां शीखवू. ३ लोभ-लोभी मनुष्यनुं चित्त सदाकाल फिकरमा भम्या करे छे. तेने कोइ पण प्रकारे संतोष उत्पन्न थतो नथी. वली लोभने वश थवाथी प्राणी नहि करवा योग्य कर्म क. रवा तत्पर थाय छे तेथी आ दुनियामां हीलना थाय छे अने परभवा पण दुःख भोगवां पडे छे. माटे जे अवसरे जे मले तेथी संतोषवृत्ति राखवी अने नीतिथी उद्यम करवो. पूर्वे जेवू पुन्य उपार्जन कर्यु होय तेवू आ भवमा मले छे, लोभ करवाथी विशेष मलतुं नथी. एवो विचार करी संतोष पकडवो. संतोषथी ज लोभ जीताय छे. ४ मान-मानदशा धरवाथी जगत्मा लघुता प्राप्त थाय छे, लोको अहंकारीनु उपनाम आपे छे, गुरुनो भने बढीलनो बिलय थतो नथी, विद्या कला आवडती नथी. अने मनुष्य भव पाम्या छत्तां पण धर्म साधी शकातो नथी; माटे मान तजी दइ गंभीरता धारण करवी. ५ हर्ष कोइ पण कार्यमा अत्यंत हर्ष धारण करवो नहीं. हर्ष करवाथी गर्बने पगथीए. चढतां वार लागती नथी. आ संसारमा सर्व वस्तुओं क्षणिक छे. शरीर आजे सुखी देखाय छे अने काल अनेक व्याधियी वीटाइ जाय छे. लक्ष्मी चपल छे, आजे जे घरमा लक्ष्मी शोमी रही छे ते घरमां बीजे दिवसे भूत वासो करी रहे छ ! माटे आवा अस्थिर पदार्थों पूर्वकृत पुन्यने लीधे प्राप्त
थयो होय तो तेनो सदुपयोग करवो; पण अत्यंत हर्षित थइ गर्व करवो • नहीं. ६ मद-मद आठ प्रकारना छे. जातिमद्र, कुलमद, , बलमद,